भारत की जंग ए आज़ादी में रेडियो का रोल
आज़ाद हिंद फ़ौज के संस्थापकों में से एक कर्नल एहसान क़ादिर आज़ाद हिंद रेडियो के डायरेक्टर थे। कर्नल इनयतुल्लाह हसन ने आज़ाद हिंद रेडियो के लिए देशभक्ति ड्रामे लिखने का काम किया करते थे, उनके लिखे ड्रामे इतने शानदार होते थे के ऑल इंडिया रेडियो को उसके समानांतर अपना अलग प्रोग्राम चलाना पड़ा।
यद्यपि आज वर्ल्ड रेडियो डे और हम आज़ादी का अमृत महोत्सव भी मना रहे तो वैसे में जंग ए आज़ादी में रेडियो के रोल पर भी चर्चा हो जानी चाहिए।
आपको मालूम होना चाहिए के 17 जून, 27 जुलाई और 17 अगस्त 1942 को नेताजी सुभाष चंद्रा बोस द्वारा रेडियो
से भारतवासियो को संबोधित किया गया; जिसमे उन्होने भारतवासीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े होने की बात कही
थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस उस समय जर्मनी की राजधानी बर्लिन में भारत की आज़ादी के लिए सैन्य सहायता
हासिल करने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन देश से उनका संबंध आज़ाद हिन्द रेडियो के ज़रिये जारी था।
Role of Radio in the JUNG E AZADI struggle of Bharat-
इधर यूसुफ़ जाफ़र मेहर अली द्वारा बनाए गए भारत छोड़ो आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने 9 अगस्त 1942
तक गांधी सहित अधिकतर कांग्रेसियों को गिरफ़्तार कर लिया था। तब उषा मेहता द्वारा 27 अगस्त 1942 को
बॉम्बे के चौपाटी इलाक़े के किसी इमारत में ट्रांसमीटर लगा कर कांग्रेस के गुप्त रेडियो का प्रसारण शुरू किया गया था।
अंग्रेज़ों से बचते बचाते उषा मेहता द्वारा संचालित कांग्रेस का यह गुप्त रेडियो कुल 88 दिनों तक ही चल सका।
इस रेडियो स्टेशन के पहले प्रसारण की उषा मेहता ने इन शब्दों के साथ शुरुआत की : “यह इंडियन नेशनल
कांग्रेस का रेडियो है, 42.34 मीटर बैंड्स पर आप हमें भारत में किसी स्थान से सुन रहे हैं।” उस अंधकार भरे
उन क्षणों में कांग्रेस सीक्रेट रेडियो ने हिन्दुस्तानियों के बीच पंथनिरपेक्षता, अंतरराष्ट्रीयता, भाईचारा और स्वतंत्रता
की भावना का प्रसार किया।
भारत की जंग ए आज़ादी में रेडियो का रोल
बर्लिन से प्रसारित होने वाले नेताजी सुभाष चंद्रा बोस के भाषणों को लोग ध्यान से सुनते और बाक़ी देशवासियों
तक पहुंचाते थे। 31 अगस्त 1942 को जो भाषण उनका प्रसारित हुआ, उसमें उन्होंने कहा था कि भारत छोड़ो
आंदोलन से अंग्रेज़ शासन की नींव हिल गयी है। उन्होंने इस आंदोलन को अहिंसात्मक गुरिल्ला युद्ध की संज्ञा
दी थी। इसी भाषण में उन्होंने पिछले रेडियो प्रासारण का हवाला देते हुए देशवासियों को ये आंदोलन कैसे आगे
बढ़ाना है इसकी कुंजी भी दी थी। उनके अनुसार गाँधी एवं अन्य नेताओं का जेल में जाना प्रेरणास्त्रोत था। और
देशवासियों को उनके सिद्धांतों का पालन कर आंदोलन आगे बढ़ाना था।
भारत की जंग ए आज़ादी में रेडियो का रोल
उन्होंने अपील की कि लोग टैक्स न दें, सरकारी नौकरियों पर काम की रफ़्तार धीरे हो, कॉलेज में पढ़ाई बाधित की
जाये, महिलाएं संदेशवाहक का काम करें, सरकारी नौकरी में लोग नौकरी न छोड़े बल्कि उस नौकरी का इस्तेमाल
देश के लिए महत्वपूर्ण जासूसी के लिए करें, घरों में नौकरी करने वाले ख़राब खाना परोसें। रेडियो स्टेशन का
आईडिया भी इस भाषण में ही दिया गया था। थानों और सरकारी स्थानों पर प्रदर्शन की अपील भी जारी की गयी।
पास से देखने पर पता चलता है कि यही रास्ता भारतीय जनता ने अपनाया और आंदोलन को मज़बूती दी। तो
आंदोलन की शुरुआत भले ही गाँधी जी ने की थी पर अंजाम तक पहुँचाया सुभाष बोस ने।
इधर 1941 में मुहम्मद इक़बाल शैदाई ने ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ रेडियो हिमालया की शुरुआत इटली में की थी,
जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी सरदार अजीत सिंह के काँधे पर थी, जो भगत सिंह के चाचा थे। इनलोगों ने रेडियो का उपयोग
अंग्रेज़ों के लिए लड़ रहे भारतीय सिपाहियों को अपनी तरफ़ करने में किया। वैसे नेताजी सुभाष चंद्रा बोस BBC को
“the Bluff and Bluster Corporation, of London” कह कर ख़िताब किया करते थे।
In the earlier post you have read aboutमध्यकालीन भारत के महत्वपूर्ण युद्ध in detail.