स्वर की परिभाषा व भेद

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स्वर की परिभाषा व भेद
स्वर की परिभाषा व भेद

स्वर की परिभाषा व भेद-इससे पहले हम आपको वर्ण  की परिभाषा व भेद के बारे में पहली पोस्ट में बता चुके हैं | आज SSCGK आपसे स्वर के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे|

स्वर की परिभाषा व भेद:-

हिंदी में स्वर की परिभाषा  –“ वे वर्ण जिन का उच्चारण बिना किसी अन्य ध्वनि की सहायता के स्वतंत्र रूप से होता है, उन्हें स्वर कहते हैं।‘’

स्वरों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है। इनकी अपनी मात्राएं होती हैं। सिर्फ अ की कोई मात्रा नहीं होती है।

हिंदी भाषा में स्वरों की संख्या 11 है

जैसे:- अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ ।

स्वर के तीन भेद होते हैं

१. ह्रस्व स्वर

२. दीर्घ स्वर 

३. प्लुत स्वर

स्वर की परिभाषा व भेद:-

. ह्रस्व स्वर -जिन स्वरों का उच्चारण करने में अर्थात बोलने में कम से कम समय लगे, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं।

जैसे -अ,इ,उ,ऋ ।

२.दीर्घ स्वर -जिन स्वरों का उच्चारण करने में अर्थात बोलने में ह्रस्व स्वर से दुगुना समय लगे, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।

जैसे -आ,ई ,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ।

३. प्लुत स्वर -जिन स्वरों का उच्चारण करने में अर्थात बोलने में ह्रस्व स्वर से तिगुना समय लगे, उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं । प्लुत स्वर को ( ऽ ) चिह्न से दर्शाया जाता है। जैसे- ओऽम्।

नोट- अं और अ: को अयोगवाह कहा जाता है।

अं का उच्चारण अनुस्वार ( ं ) के रूप में और अ: का उच्चारण ‘ह’ ध्वनि के समान होता है तथा इसका चिह्न विसर्ग (:) होता है।

विसर्ग (:) का प्रयोग प्रायः संस्कृत भाषा में होता है।

हिंदी में स्वर की परिभाषा व भेद-

स्वरों का वर्गीकरण सात प्रकार से किया जाता है-

१.जिह्वा की स्थिति के आधार पर 

२.रचना के आधार पर

३.मुख खुलने व बंद होने का आधार पर 

४.होठों की बनावट /स्थिति के आधार पर 

५.जिह्वा पेशियों में तनाव के आधार पर  

६.स्वर तंत्रिकाओं के कंपन के आधार पर 

७..उच्चारण स्थान के आधार पर 

१. जिह्वा की स्थिति के आधार पर

स्वरों को जिह्वा की बनावट स्थिति के आधार पर तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया है-

(i).अग्र स्वर- वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय जीभ के अग्रभाग प्रयोग होता है। जैसे- इ, ई, ए, ऐ ।

(ii).मध्य स्वर-वे स्वर जिन का उच्चारण करते समय जीभ के मध्य भाग प्रयोग होता है। जैसे-

(iii).पश्च स्वर-वे स्वर जिन का उच्चारण करते समय जीभ के पश्च का भाग का प्रयोग होता है। जैसे- आ, उ, ऊ,ओ,औ

स्वर की परिभाषा व भेद:-

२. रचना के आधार पर

रचना के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण दो प्रकार से किया गया है-

(i). मूल स्वर-वे स्वर जिनकी रचना किसी अन्य स्वर से नहीं हुई है।
जैसे- अ, इ, उ, ऋ ।

(ii). संयुक्त स्वर-वे स्वर जिनकी रचना अन्य स्वरों  से हुई है।

जैसे- ए, ऐ, ओ, औ ।

स्वर की परिभाषा व भेद:-

३. मुख के खुलने व बंद होने के आधार पर स्वर के भेद 

मुख के खुलने व बंद होने के आधार पर स्वरों को चार प्रकार से वर्गीकृत किया गया है –

(i).विवृत – वे स्वर जिनका का उच्चारण करते समय मुख द्वार अधिक खुला रहता है। जैसे- आ ।

(ii)अर्धविवृत -वे स्वर जिन का उच्चारण करते समय मुख द्वार विवृत की तुलना में कम खुला रहता है। जैसे- अ, ऐ,ओ,औ ।

(iii)संवृत – स्वर जिन का उच्चारण करते समय मुख द्वार सबसे कम खुलता है। जैसे- इ, ई, उ, ऊ आ।

(iv)अर्ध संवृत-वे स्वर जिन का उच्चारण करते समय मुख्य द्वार संवृत की तुलना में अधिक खुलता है। जैसे- ए ।

स्वर की परिभाषा व भेद:-

४. होठों की बनावट स्थिति के आधार पर

होठों की बनावट स्थिति के आधार पर स्वरों को तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया है –

(i).वर्तुल स्वर– जिन स्वरों का उच्चारण करते समय होठों की  बनावट वृतुलाकार होती है ।जैसे- उ, ऊ, ओ, औ ।

(ii).अवर्तुल स्वर -जिन स्वरों का उच्चारण करते समय होठों की स्थिति दीर्घ वृत्त के समान होती है। जैसे- इ, ई, ए, ऐ |

(iii).अर्धवर्तुल स्वर-जिन स्वरों का उच्चारण करते समय होठों की स्थिति बनावट अर्धवृत्तालुकार होती है। जैसे- आ  ।

स्वर की परिभाषा व भेद:-

५.जिह्वा पेशियों के तनाव के आधार पर

जिह्वा पेशियों के तनाव के आधार पर स्वरों को दो प्रकार से वर्गीकृत किया गया है –

(i).शिथिल -जिन स्वरों का उच्चारण करते समय जिह्वा की पेशियों पर तनाव नहीं पड़ता। जैसे- अ, इ, उ ।

(ii).कठोर -जिन स्वरों का उच्चारण करते समय जिह्वा की पेशियों पर तनाव पड़ता है। जैसे- आ,ई, ऊ।

स्वर की परिभाषा व भेद:

६. स्वर तंत्रियों के कंपन के आधार पर स्वर के भेद 

स्वरतंत्रियों के कंपन के आधार पर वर्णों को दो प्रकार से वर्गीकृत किया गया है –

(i). घोष -जिन वर्णों का उच्चारण करते समय स्वर तंत्रियां झंकृत होती हैं,वे घोष वर्ण कहलाते हैं । सभी स्वरों को घोष वर्ण माना गया है।
जैसे:- अ,आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ आदि ।

(ii). अघोष-जिन वर्णों का उच्चारण करते समय स्वर तंत्रियां झंकृत नहीं होती हैं,वे अघोष वर्ण कहलाते हैं ।

स्वर की परिभाषा व भेद:-

७.उच्चारण स्थान के आधार पर- 

उच्चारण स्थान के आधार पर स्वरों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है-

(i). कंठ – अ, आ

(ii). तालव्य – इ, ई

(iii). मूर्धन्य – ऋ

(iv). ओष्ठ्य – उ, ऊ

(v). नासिक्य– अं

(vi). कंठ तालव्य– ए, ऐ

(vii). कंठौष्ठ्य– ओ, औ।

स्वर की परिभाषा व भेद:-

अनुस्वार –जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास वायु केवल नाक से निकले अर्थात जिन वर्णों का उच्चारण केवल नाक से किया जाता है,वे अनुस्वार कहलाते हैं |

जैसे –गंगा, नंदनी, अंग, पंगा ,रंगीन, वंदना, संजना आदि |

अनुनासिक – जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास वायु नाक और मुंह दोनों से एकसाथ निकले अर्थात जिन वर्णों का उच्चारण नाक और मुंह  से किया जाता है ,वे अनुस्वार कहलाते हैं |

जैसे –चाँद ,चाँदनी, छाँव, गाँव, भँवर, भँवरा आदि |

परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण प्रश्न –
प्रश्न 1 .हिंदी भाषा में स्वरों की संख्या कितनी  है ?
उत्तर -हिंदी भाषा में स्वरों की संख्या 11 है ।
प्रश्न २ .अयोगवाह किसे कहते हैं ?
उत्तर – हिंदी  वर्णमाला में  अं का उच्चारण अनुस्वार ( ं ) के रूप में और अ: का उच्चारण ‘ह’ ध्वनि के समान होता है तथा इसका चिह्न विसर्ग (:) होता है।इन वर्णों (अं और अ:) को अयोगवाह कहते हैं | हिंदी में दो अयोगवाह होते हैं-अं और अ: |