छंद की परिभाषा एवं प्रकार

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छंद की परिभाषा एवं प्रकार
छंद की परिभाषा एवं प्रकार

छंद की परिभाषा एवं प्रकार:-आज SSCGK आपसे छंद की परिभाषा एवं प्रकार के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

इससे पहली पोस्ट में आप SSC CHSL EXAM 2014 के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं।

छंद की परिभाषा एवं प्रकार:-

साहित्य में छंद का अपना विशेष महत्व है। जिस प्रकार अलंकार काव्य शोभा बढ़ाते हैं ठीक उसी प्रकार छंद कविता रूपी कामिनी के शरीर को ढकने का साधन है। जिस प्रकार बिना कपड़ों के शरीर शोभा नहीं देता ठीक उसी प्रकार बिना छंद के की हुई रचना शोभा नहीं पाती।छंद ही काव्य को सुंदर आकर्षक रूप धारण करके आकर्षण का केंद्र बनती है। छंद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के छिदि धातु’ से हुई है, जिसका अर्थ है- ढकना

छंद एक ऐसी पद बद्ध रचना होती है जिसमें अक्षरों, मात्राओं, यति, गति,  व लय आदि का विशेष ध्यान रखा जाता है।”

अन्य शब्दों में छंद की परिभाषा किस प्रकार दी जा सकती है:-

जिस काव्य रचना में अक्षरों, मात्राओं, गति, यति, लय आदि का पालन हो, उसे छंद कहते हैं।”

हिंदी भाषा में छंद के प्रकार :-

 साहित्य में छंद की रचना निम्नलिखित तत्वों के आधार पर की जाती है:-

  1. पाद /चरण
  2. वर्ण और मात्रा
  3. लघु और गुरु
  4. यति
    5.गति

1.पाद/चरण-प्रत्येक छंद में चार चरण/पाद होते हैं |चरणों की रचना निश्चित वर्णों या मात्राओं के अनुसार होती हैं। लेकिन कुछ छंदों में होते तो 4 चरण है, लेकिन वह 2 पंक्तियों में लिखे जाते हैं ।

जैसे- दोहा, सोरठा तथा बरवै।

चौपाई के 4 पद होते हैं जो 2 पंक्तियों में लिखे जाते हैं छंद के चार चरणों में पहले और तीसरे पाद/ को विषम पाद/चरण का दूसरे और चौथे को सम पाद/चरण कहते हैं।

2.वर्ण और मात्रा-

वर्ण- प्रत्येक छंद में वर्णों की की गणना करते समय चाहे वर्ण ह्रस्व हो या फिर दीर्घ हो, उसे एक ही वर्ण माना जाएगा।

जैसे- फसल, अजय, नकल, नदी, कमल।।

मात्रा-मात्राओं को गिनते समय लघु स्वर की एक मात्रा और दीर्घ स्वर की दो मात्राएं मानी जानी चाहिए।

जैसे- कविता, काजल, रौनक

क=एक मात्रा

वि=एक मात्रा

ता=दो मात्राएं

 

रौ=दो मात्राएं

न=एक मात्रा

क=एक मात्रा

छंद की परिभाषा एवं प्रकार:-

3.लघु और गुरु-
लघु-एक ह्रस्व स्वर की मात्रा वाला अक्षर लघु अक्षर कहलाता है। इसके लिए यह चिह्न(।) प्रयोग होता है।

जैसे:- कमल, फसल।

क=।

म=।

ल=।

कमल= । । ।

फसल= । । ।

गुरु-दीर्घ स्वर की मात्रा वाला अक्षर गुरु अक्षर कहलाता है। इसके लिए यह चिह्न(ऽ) प्रयुक्त होता है।

जैसे:- पाला, शीला, दीपू ,नीता, गीता आदि।

पाला= ऽ ऽ ऽ

शीला= ऽ ऽ

संतोष= ऽ ऽ ।

दीपू= ऽ ऽ

नीता= ऽ ऽ

गीता= ऽ ऽ

4.यति-यति का अर्थ होता है- विराम। कविता या छंद को पढ़ते समय जहां हम रुकते हैं या विराम लेते हैं, वहां यति का प्रयोग होता है।यदि के प्रयोग से छंद में मधुरता सरसता और स्पष्ट कर आती है। यति भंग होने पर अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

जैसे-

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल

सबका लिया सहारा ।

पर नर-व्याघ्र, सुयोधन तुमसे

 कहो, कहां, कब हारा।

5.गति-कविता में नदी के प्रवाह के समान प्रवाहपूर्ण होना आवश्यक है। कविता के इस प्रवाह को ही गति कहते है|

छंद की परिभाषा एवं प्रकार:-

छंद के प्रकार-वर्ण एवं मात्रा के आधार पर छंद दो प्रकार के होते हैं-
1.
वर्णिक छंद
2.मात्रिक छंद

1.वर्णिक छंद – साहित्य में वर्णों तथा आश्रित रहने वाले छंदो को वर्णिक छंद कहते हैं। इनकी व्यवस्था वर्णों की गणना के आधार पर की जाती है । .साहित्य में वर्णिक छंद को वृत भी कहते हैं।जिस छंद के प्रत्येक चरण में वर्णों का क्रम और वर्णों की संख्या निश्चित होती है। ऐसे छंदों को वर्णिक छंद कहा जाता है। इस प्रकार के वर्णिक छंद की रचना करते समय वर्णों के क्रम का सही ज्ञान और पदों के बीच कि यति का ज्ञान होना परम आवश्यक है।

गण-तीन वर्णों के समूह को गण कहते है।

जैसे-

 ऽ  ऽ  ।     । । ।    । । ।   । । ।   । । ।  

    आकाश       मानसी    धीरज   सुमन   सुदेश 

वर्ण गण आठ प्रकार के होते हैं-

यमाताराजभानसलगा

गण का नाम, लक्षण व उदाहरण-

१.यगण– आदि अक्षर लघु शेष गुरु=

२.मगण– तीनों अक्षर गुरु=

३.तगण– पहले दो गुरु शेष लघु=

४.रगण– मध्य लघु शेष गुरु=  

५.जगण– मध्य गुरु शेष लघु=

६.भगण– आदि गुरु शेष लघु= ।।

७.नगण– तीनों अक्षर लघु= ।‌‌‌।।

८.सगण– पहले दोनों लघु अंतिम गुरु= ।।

और अंत में

लघु =

गुरु=

छंद की परिभाषा एवं प्रकार:-

हिंदी भाषा में प्रमुख वर्णिक छंद निम्न प्रकार के होते हैं-

नं.1. मालिनी छंद

नं.2. वंशस्थ छंद

नं.3. शिखरिणी छंद

नं.4. शार्दुल विक्रीडित छंद

नं.5. इंद्रवज्रा छंद

नं.6. मंदाक्रांता छंद

नं.7. उपेंद्रवज्रा छंद-

नं.8. भुजंगप्रयात छंद

नं.9. उपजाति छंद

नं.10.अरिल्ल छंद

नं.11.द्रुतविलंबित छंद

छंद की परिभाषा एवं प्रकार:-

नं.1. मालिनी छंद-मालिनी छंद के चार चरण होते हैं और इसके प्रत्येक चरण में 15 वर्ण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 8-7 वर्णो के उपरांत यति होती है। इस छंद के प्रत्येक चरण में दो नगण, एक मगण, दो यगण होते हैं।

उदाहरण-

प्रिय पति वह मेरा, प्राण प्यारा कहां है?

दुख जलनिधि में डूबी, का सहारा कहां है?

लख मुख जिसका मैं आज लौं जी सकी हूं।

वह हृदय हमारा, नैन तारा कहां है? 

नं.2. वंशस्थ छंद-इस छंद के चार चरण होते हैं और इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं।इस छंद के प्रत्येक चरण में क्रम से जगण, तगण, जगण, रगण और अंत में लघु एवं गुरु होते हैं।

उदाहरण-

मुकुंद चाहे वसुदेव पुत्र हों।

कुमार होवें अथवा ब्रजेश के।

बिके उन्हीं के कर सर्व नेत्र हैं।

बसे हुए हैं मन नेत्र में वही।।

नं.3. शिखरिणी छंद- शिखरिणी छंद के चार चरण होते हैं और इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं। इस छंद के प्रत्येक चरण में क्रमशः यगण, मगण, नगण, सगण, भगण, एवं अंत में लघु गुरु वर्ण होते हैं।

उदाहरण-

अनूठी आभा से, सरस सुषमा से सुरस से।

बना तो देती थी बहु गुणमयी भू विपिन की।।

निराले फूलों की विविध दलवाली अनुपमा।

जड़ी-बूटी नाना बहु फलवती थी विलसती।।

छंद की परिभाषा एवं प्रकार:-

नं.4. शार्दुल विक्रीडित छंद- इस छंद के चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में यति 12, 7 वर्णो पर होती है। इसके प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण सगण जगण सग तगण तगण और अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं।

उदाहरण-

सायंकाल हवा समुद्र तट की आरोग्यकारी यहां।

प्राय: शिक्षित सभ्य लोग नित ही जाते इसी से वहां।।

बैठे हास्य विनोद मोद करते सानंद वे दो घड़ी।

सो शोभा उस दृश्य की हृदय  को है तृप्ति देती बड़ी।। 

नं.5. इंद्रवज्रा छंद- इंद्रवज्रा छंद के चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 11 वर्ण तथा 5-11/6-11 वर्णों के बाद यति होती है। इसके प्रत्येक चरण में क्रम से 2 तगण, एक जगण वह दो गुरु वर्ण होते हैं।

उदाहरण-

तू ही बसा है मन में हमारे।

तू ही रमा है इस विश्व में भी।।

तेरी छटा है मन मुग्धकारी।

पापापहारी भवतापहारी।। 

नं.6. मंदाक्रांता छंद- यह छंद एक समवर्ण छंद है। इस छंद के भी चार चरण होते हैं और इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं इसके प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण, भगण, नगण, तगण, तगण और अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं।

उदाहरण-

सूखी जाती मलिन लतीका,जो धरा में पड़ी हो।

तो तू पंखों निकट उसको, श्याम के ला गिराना।

यों सीधे तू प्रगट करना, प्रीति से वंचिता हो।

मेरा होना अति मलिन औ सूखते नित्य जाना।।

छंद की परिभाषा एवं प्रकार:- 

नं.7. उपेंद्रवज्रा छंद- एक छंद के चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं।इसके प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण, तगण, जगण और दो गुरु होते हैं।

उदाहरण-

बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै।

परंतु पूर्वापर सोच लीजै।

बिना विचारे यदि काम होगा।

कभी न अच्छा परिणाम होगा।।

नं.8. भुजंगप्रयात छंद- भुजंगप्रयात छंद के चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में चार यगण होते हैं।

उदाहरण-

अरी व्यर्थ है व्यंजनों की बड़ाई।

हटा थाल तू क्यों इसे साथ लाई।।

वही पार है जो बिना भूख पावै।

बता किंतु तू ही उसे कौन खावै।।

नं.9. उपजाति छंद- उपजाति छंद के चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। यह छंद इंद्रवज्रा और उपेंद्रवज्रा के योग से बना हुआ है।

उदाहरण-

संसार है एक अरण्य भारी।

हुए जहां हैं हम मार्गचारी।

जो कर्म रूपी न कुठार होगा।

तो कौन निष्कंटक भार होगा।।

छंद की परिभाषा एवं प्रकार:- 

नं.10.अरिल्ल छंद-इस छंद के चार चरण होते हैं और इसके प्रत्येक चरण में 16 वर्ण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण के अंत में यगण या दो लघु वर्ण होते हैं।

उदाहरण-

ईश्वर ही है सब सुख दाता।

भक्तों का वह सब विधि त्राता।।

इसलिए भव मोह छोड़ कर।

रहो उसी से नेह जोड़कर।।

नं.11.द्रुतविलंबित छंद-द्रुत विलंबित छंद के चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 12-12 वर्ण होते हैं। इस छंद के प्रत्येक चरण में क्रम से नगण, भगण, भगण, रगण होते हैं।

उदाहरण-

दिवस का अवसान समीप था,

गगन था कुछ लोहित हो चला।

तरु शिखा पर थी अब राजति,

कमलिनी कुल वल्लभ की प्रभा।।