बचपन की सामाजिक भावनात्मक समस्याएं:- इस आर्टिकल में आज SSCGK आपसे बचपन की सामाजिक भावनात्मक समस्याएं के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। इससे पहले आप शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धांत के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं।
बचपन की सामाजिक भावनात्मक समस्याएं:-
पूर्व बाल्यावस्था के दौरान भावना अधिक तीव्र होती है यह असंतुलन का समय होता है। परिणाम स्वरूप उनके साथ रहना और उनका मार्गदर्शन करना कठिन होता है। इस अवस्था की भावनात्मक विशेषताओं का उद्गम मनोवैज्ञानिक होता है ना कि जैविक।
व्यवस्था की कुछ समय सामान्य सामाजिक भावनात्मक विशेषताओं का पैटर्न निम्नलिखित है-
नं.1. क्रोधी
नं.2. भय
नं.3. ईर्ष्या
नं.4. उत्सुकता
नं.5. आनंद
नं.6. दु:ख
नं.7. सहानुभूति
नं.8. प्रतिद्वंदिता
नं.9. सहयोग की भावना
नं.10.परानुभूति
नं.11.सामाजिक अनुमोदन
नं.12.अनुभव साझा करना
नं.13.आसक्ति व्यवहार
बचपन की सामाजिक भावनात्मक समस्याएं:-
नं.1. क्रोधी-बच्चों में क्रोध का मुख्य कारण के खेलने की वस्तुओं में विरोधी इच्छाओं का पूरा ना होना होता है। क्रोधी बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन अपने हाव-भाव द्वारा करते हैं। जैसे- रोना, चिल्लाना, मारना आदि।
नं.2. भय-भय उत्पन्न करने में संबंधी करण अनुसरण वह कटु अनुभवों की स्मृतियों का विशेष महत्व होता है। इस प्रकार का यह भय डरावनी कहानियों, चित्रों आदि के द्वारा उत्पन्न होता है।प्रारंभ में भय के प्रति बच्चे की प्रकृति डरने की होती है। इसमें शामिल है- दूर भागना, छिपना, रोना आदि।
Bachpan ki Samajik Bhavnatmak Samasyaen:-
नं.3. ईर्ष्या-छोटे बच्चे अनुभव करते हैं कि शैशवावस्था में यह देखते हैं कि उनके अभिभावकों का ध्यान परिवार में किसी अन्य सदस्य की ओर स्थानांतरित हो रहा है, तो वे ईर्ष्यालु बन जाते हैं।आमतौर पर यह भाई बहनों के साथ होता है।छोटे बच्चे अपनी एकता को मुक्त रूप से व्यक्त करते हैं या शिशु की तरह व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। जैसे- बिस्तर गीला करना, बीमारी का बहाना बनाना आदि।
नं.4. उत्सुकता-बच्चे किसी भी नई वस्तु के प्रति उत्सुकता दिखाते हैं।वे अपने शरीर और दूसरों के चोरी के बारे में जानने को भी उत्सुक रहते हैं। उनकी उत्सुकता के प्रति सर्वप्रथम प्रतिक्रिया संवेदनात्मक खोजों के रूप में होती हैं।
नं.5. आनंद-छोटे बच्चे स्वयं की शारीरिक रूप से स्वस्थ होने की भावना के साथ कुछ चीजों में आनंद का अनुभव करते हैं।जैसे -असंगत परिस्थितियों, अचानक शोर, छोटी-छोटी आपदाएं, शरारत करना और जो कार्य उनके लिए कठिन प्रतीत होता है, उसे पूरा करना।
बचपन की सामाजिक भावनात्मक समस्याएं:-
नं.6. दु:ख-ऐसी किसी भी वस्तु जिसे बच्चे प्यार करते हैं और वे उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, के टूट जाने या खराब होने पर भी उदास हो जाते हैं।
नं.7. सहानुभूति-सहानुभूति में दूसरों के विचारों और भावनाओं को समझने की आवश्यकता होती है। फतेह तीसरे वर्ष के पूर्व कभी-कभी दिखाई देती है। अतः बच्चे को खेलने के अवसर प्रदान किए जाने चाहिएं।
नं.8. प्रतिद्वंदिता-बच्चों के चौथे वर्ष के प्रारंभ में यह दिखाई देता है कि उत्तम बनने एवं दूसरों से अच्छा करने की इच्छा रखते हैं। यह भावना घर से प्रारंभ होती है और बाद में घर से बाहर बच्चों के साथ खेल कूद में विकसित होती है।
बचपन की सामाजिक भावनात्मक समस्याएं:-
नं.9. सहयोग की भावना-बच्चों में तीसरे वर्ष के अंत तक सहयोग की भावना खेल और सामूहिक गतिविधियों में विकसित होना आरंभ हो जाती है।
नं.10. परानुभूति-इसमें भी दूसरों के विचारों और भावनाओं को समझने की आवश्यकता होती है।परंतु इसके अतिरिक्त इसमें एक व्यक्ति को स्वयं को दूसरे व्यक्ति के स्थान पर रखने की कल्पना करने की योग्यता होनी चाहिए।
नं.11. सामाजिक अनुमोदन-बाल्यावस्था समाप्त होने तक की अवस्था में संगी साथी का अनुमोदन वयस्कों के अनुमोदन से अधिक महत्वपूर्ण होता है।
नं.12. अनुभव साझा करना-छोटे बच्चे दूसरों के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हैं।
बचपन की सामाजिक भावनात्मक समस्याएं:-
नं.13. आसक्ति व्यवहार – बच्चे अपने आसक्ति व्यवहार द्वारा खोज लेते हैं कि दूसरों के साथ तीव्र निकटतम और व्यक्तिगत संगति के द्वारा जो संतुष्टि प्राप्त होती है और कहीं नहीं प्राप्त होती। इस प्रकार वे धीरे-धीरे अपने स्नेह को घर के बाहर के व्यक्ति से जोड़ लेते हैं।
एक शिक्षक ऐसे बच्चों की पहचान निम्नलिखित सरल जांच सूची एवं उपयोग द्वारा कर सकता है:-
नं.1. क्या बच्चा बहुत शर्मीला है?
नं.2. क्या बच्चा बहुत जिद्दी है?
नं.3. क्या बच्चा बहुत बार क्रोधित हो जाता है?
नं.4. क्या बच्चा हर समय लड़ाई करता है?
नं.5. क्या बच्चा अधिक अनुशासन हीन है?
नं.6. क्या बच्चा बहुत बार तनाव में रहता है?
सामाजिक व भावनात्मक व्यवहार संबंधी समस्याओं के कारण-
1.शिक्षक द्वारा निरंतर डांटना।
2.अभिभावकों द्वारा ठुकराना।
3.मित्रों का अभाव/कमी।
4.कक्षा और घर में शिक्षकों और अभिभावकों द्वारा बच्चे की उपलब्धि की तुलना अन्य बच्चों से करना।
5.निम्न आत्म अवधारणा।
6.कक्षा में लगातार अनुत्तीर्ण होना।
7.पारिवारिक तनाव व दबाव।
बचपन की सामाजिक भावनात्मक समस्याएं:-
एक शिक्षक की भूमिका:-
शिक्षक कक्षा कक्ष में शिक्षण प्रक्रिया के दौरान विद्यार्थियों ने सामाजिक भावनात्मक विकास को बढ़ावा दे सकता है।बच्चों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील रहना आत्मविश्वास पूर्ण बनने में सहायक होता है।
प्रत्येक बच्चे की आवश्यकताओं का ध्यान रखना-शिक्षक को प्रत्येक बच्चे के सामाजिक एवं भावनात्मक कौशलों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखना चाहिए ताकि वहबच्चे के विकास हेतु निर्धारित पाठ्यपुस्तक एवं हस्तक्षेपों का लाभ उठा सकें।
आरंभिक भावनात्मक अनुभव का महत्व होता है-
शिक्षक को यह स्वीकार करना चाहिए कि सभी पक्षों में भावनात्मक बुनियादी है।यदि बच्चे सहायक भावनात्मक वातावरण में विद्यालय आरंभ करते हैं तो वह निर्दलीय के सभी आवश्यक क्षेत्रों में सफलता हेतु अधिगम के लिए स्नेह अर्जित करेंगे यदि शिक्षक बच्चों को गतिविधियों में पहल करने का अवसर दें, एवं उनके विचारों पर लचीला व्यवहार रखें तो वे बच्चों की भावनाओं को सशक्त बनाएंगे।
बचपन की सामाजिक भावनात्मक समस्याएं:-
निरंतर खेल भावनाओं को बढ़ावा देना:-
किंडरगार्टन के बच्चों को खेल गतिविधियों द्वारा निरंतर खेल संस्थाओं का उपयोग और उनसे अपेक्षित व्यवहार के अवसर प्रदान करने से उनमें कक्षा कक्ष के मानकों को याद रखने में सहायता मिलती है।
साथियों और व्यस्कों के साथ सकारात्मक संबंध-
बच्चों के सामाजिक व भावनात्मक विकास में उनके साथी, अभिभावक और शिक्षक मुख्य भूमिका निभाते हैं। सर्वप्रथम वह विद्यालय को बच्चों के अनुकूल बनाते हैं। बच्चे अधिक सकारात्मक संबंध विकसित करते हैं,
जब शिक्षक-
>उपयुक्त सामाजिक व्यवहारों के आदर्श होते हैं।
>बच्चों को स्पष्ट निर्देश देता है।
>ऐसा पाठ्यक्रम प्रस्तुत करता है जो बच्चों को संलग्न करने वाला और उनके जीवन व संस्कृति के लिए प्रासंगिक हो।
>बच्चों के सामाजिक भावनात्मक कौशलों के विकास हेतु अभिभावकों को दो तरफा संबंध में संलग्न रखते हैं।
>शिक्षक द्वारा पुरस्कार का प्रयोग:-
बच्चों के व्यवहार में सुधार लाने का सर्वाधिक सामान्य तरीका, शिक्षकों द्वारा पुरस्कार का उपयोग करना है।
पुरस्कार एक ऐसी वस्तु है, जो बच्चे को अपेक्षित व्यवहार हेतु सहायता करती है। पुरस्कार कई प्रकार के हो सकते हैं| जैसे-
1.प्राथमिक पुरस्कार- जैसे- चाय, कॉफी, दूध आदि।
2.सामग्री पुरस्कार- जैसे- फूल, चूड़ियां आदि।
3.मौखिक पुरस्कार-जैसे- बहुत अच्छा, इसे बनाए रखें, शाबाश आदि।
4.गतिविधि पुरस्कार- जैसे- संगीत, सुनना, खेलना, चित्र बनाना आदि।