भाषा किसे कहते हैं- आज इस आर्टिकल में SSCGK आपके साथ भाषा किसे कहते हैं, के बारे में विस्तार से चर्चा करेगे।
भाषा किसे कहते हैं:–
जैसा कि आपको विदित है भाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के की भाष् धातु से हुई है। भाष् का अर्थ होता है बोलना।
इस प्रकार इसका अर्थ हुआ बोल कर अपने विचार प्रकट करना।हम जानते हैं की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है |
अपने दैनिक जीवन में उसे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है | इस प्रकार
उसे अपने मन के विचारों को दूसरों के सामने बोलकर या लिखकर प्रकट करना पड़ता है |
भाषा के बिना मानव का जीवन अधूरा है |भाषा के आभाव में उसे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में बहुत कठिनाई होगी |समाज में रहते हए भाषा के अभाव में उसका जीवन नारकीय बन जायेगा | इसलिए मानव जीवन के लिए भाषा का होना परम आवश्यक है|भाषा ही मानव को सुसंस्कृत बनती है तथा मानव समाज के उत्थान एवं विकास में सहायक होती है |सुसंस्कृत भाषा द्वारा ही एक समाज उत्कृष्ट बनता है ओर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता है |
भाषा की परिभाषा व प्रकार फॉर एसएससी :-
आप जानते हैं कि कक्षा में अध्यापक अपनी बात बोलकर समझाते हैं और विद्यार्थी उनकी बात सुनकर समझते हैं। विधार्थी भी अपने अध्यापक के प्रश्नों उत्तर अपनी सीखी हुई भाषा में देते हैं | यहाँ तक एक छोटा बालक भी माता-पिता से तोतली भाषा में बोलकर अपने मन के भाव प्रकट करता है और वे उसकी बात सुनकर समझते हैं।हम यह बात भली भाँती जानते हैं कि सभी प्राणियों द्वारा मन के भावों का आदान-प्रदान करने के लिए भाषा का प्रयोग किया जाता है। पशु-पक्षियों की भी अपनी एक विशेष भाषा होती है| वे भी एक दूसरे से अपने मन के विचारों का आदान प्रदान करते हैं|
इसके द्वारा मनुष्य के भावो, विचारो और भावनाओ को व्यक्त किया जाता है।
हिंदी में भाषा की परिभाषा
“भाषा व साधन है जिसके द्वारा हम अपने मन के विचारों को दूसरों के सामने लिखकर ,बोलकर या संकेतों द्वारा प्रकट करते हैं तथा दूसरों के विचारों को समझते हैं।”
मौखिक भाषा की मूल इकाई ध्वनि होती है, जबकि लिखित भाषा की मूल इकाई वर्ण होती है। वर्तमान समय में संसार में अनेक भाषाएं बोली और समझी जाती हैं।
आचार्य देवनाथ शर्मा के अनुसार भाषा की परिभाषा,
“किसी भाषा में उच्चरित ध्वनि संकेतो की सहायता से भाव या विचार का पूर्ण परस्पर विचार-विनिमय अथवा जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते है उस यादृच्छिक, रूढ़ ध्वनि संकेत की प्रणाली को भाषा कहते है।”
उपरोक्त परिभाषा पर आधारित विचारणीय बातें निम्नलिखित हैं –
1.भाषा ध्वनि संकेत है
2. वह यादृच्छिक है
3. वह रूढ़ है |
निष्कर्ष :- किसी भी भाषा को ध्यान में रखते हुए हम निम्नलिखित भाषा के निष्कर्ष निकाल सकते हैं –
1.हरेक समाज के ध्वनि-संकेत अपने होते हैं, दूसरों से भित्र होते हैं।
2.मन की बातों या विचारों का विनिमय भाषा के सार्थक ध्वनि-संकेतों से होता है।
3.भाषा में ध्वनि-संकेतों का परम्परागत और रूढ़ प्रयोग होता है।
4. किसी समाज या वर्ग के आन्तरिक और ब्राह्य कार्यों के संचालन या विचार-विनिमय मेंभाषा के ध्वनि-संकेत सहायक होते हैं।
जैसे -हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, पंजाबी, तमिल, तेलुगू, अरबी, मलयालम, कन्नड़ आदि।
भाषा और बोली में अंतर–
बोली एक सीमित क्षेत्र में बोली जाती है जबकि भाषा विस्तृत क्षेत्र में बोली जाती है।
जैसे- हरियाणवी एक बोली है जबकि हिंदी एक भाषा है।
भाषा किसे कहते हैं व इसके प्रकार:–
भाषा तीन प्रकार की होती है-
No.-1.मौखिक भाषा
No.-2.लिखित भाषा
No.-3.सांकेतिक भाषा
भाषा के प्रकार:-
No.-1.मौखिक भाषा:- जब हम अपने मन के विचारों को दूसरों के सामने बोलकर प्रकट करते हैं तथा दूसरों के बोले हुए विचारों को समझते हैं, तो भाषा के इस रूप को मौखिक भाषा कहते हैं। सर्वप्रथम मौखिक भाषा ही प्रचलन में आई। मौखिक भाषा का रूप अस्थाई होता है। भाषा का यह रूप बोलने के उपरांत ही समाप्त हो जाता है ।
No.-2.लिखित भाषा:- जब हम अपने मन के विचारों को दूसरों के सामने लिखकर प्रकट करते हैं तथा दूसरों के लिखित विचारों को समझते हैं, तो भाषा के इस रूप को लिखित भाषा कहते हैं। लिखित भाषा भाषा का स्थाई रूप होता है। भाषा का यह रूप कभी समाप्त नहीं होता है।
No.-3.सांकेतिक भाषा:– जब हम अपने मन के विचारों को दूसरों के सामने संकेतों द्वारा प्रकट करते हैं, तो भाषा के इस रूप को सांकेतिक भाषा कहते हैं। सांकेतिक भाषा का प्रयोग प्राय: गूंगे बहरों को समझाने के लिए किया जाता है।
VERY IMPORTANT QUESTIONS.-
Q.1.सांकेतिक भाषा किसे कहते हैं?सांकेतिक भाषा का प्रयोग किसके लिए किया जाता है।
Ans.-सांकेतिक भाषा का प्रयोग प्राय: गूंगे बहरों को समझाने के लिए किया जाता है।