व्यंजन संधि की परिभाषा व नियम:-
आज SSCGK आपसे व्यंजन संधि की परिभाषा व नियमों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। पिछली पोस्ट में आप स्वर संधि की परिभाषा व भेद के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं।
व्यंजन संधि का अर्थ:-व्यंजन संधि का अर्थ है एक व्यंजन का दूसरे स्वर या व्यंजन से मेल।
जैसे:-
क् + ई =गी
त् + ह = द्ध
द् + अ =ग
च् + अ =ज
त् + ज् =ज्
व्यंजन संधि की परिभाषा व नियम फॉर एचएसएससी :-
व्यंजन संधि की परिभाषा:-“किसी व्यंजन का स्वर या व्यंजन से मेल होने पर जो विकार /परिवर्तन होता है तो, उसे व्यंजन संधि कहते हैं।”
जैसे :-
वाक् + ईश = वागीश
दिक् + अंबर= दिगंबर
सम् + तोष = संतोष
सम् +सार = संसार
ओम् + कार= ओंकार
सम् + रक्षण = संरक्षण
सम् + वत = संवत
जगत् + नाथ =जगन्नाथ
सम् +योगिता =संयोगिता
उत् + थान = उत्थान
जगत् + ईश =जगदीश
व्यंजन संधि के नियम फॉर एस एस सी :-
- यदि क्, च्, ट् त्, प् के बाद को स्वर, या किसी भी वर्ग का तीसरा चौथा वर्ण या य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण आया हो तो क् को ग्, च् को ज्, ट् को ड्, त् को द् तथा प को ब् हो जाता है।
जैसे:-
दिक् + अंबर=दिगंबर
वाक् + ईश=वागीश
दिक् + गज= दिग्गज
अच् + अंत=अजंत
दिक् + अंत=दिगंत
षट् + आनन=षडानन
उत् + घाटन=उद्घाटन
उत् + देश्य =उद्देश्य
आप् + ज=अब्ज
वाक् + दान=वाग्दान
उत् + हार=उद्धार
षट् + दर्शन=षड्दर्शन
जगत् + ईश=जगदीश
भगवत् + गीता = भगवद्गीता
उत् +गम =उद्गम
जगत् + अंबा=जगदंबा
व्यंजन संधि के नियम फॉर एस एस सी सी एच एस एल :-
- यदि क्, च्, ट्, त्, प् के बाद न या म आया हो तो, क् को ङ् ,च को ञ् , ट् को ण्, तथा प् को म् हो जाता है ।
जैसे:-
वाक्+ मय= वाङ्मय
दिक्+नाथ= दिङ्नाथ
षट्+=मास = षण्णमास
जगत्+नाथ= जगन्नाथ
उत्+गम= उद्गम
सत्+मार्ग =सन्मार्ग
चित्+मय= चिन्मय
उत् +नति = उन्नति
अप्+मय= अम्मय
उत्+नयन=उन्नयन
व्यंजन संधि की परिभाषा व नियम:-
- यदि त् के बाद च् या छ् हो तो, च्, छ् को च् हो जाता है ।
जैसे:-
उत्+चारण= उच्चारण
सत्+चरित्र =सच्चरित्र
उत् +श्वास =उच्छवास
तत् + छाया =तच्छाया
सत्+चित्+आनंद =सच्चिदानंद
उत्+छिन्न =उच्छिन्न
- यदि त् के बाद ज् हो तो त् को ज् हो जाता है ।
जैसे:-
विपत्+जाल= विपज्जाल
उत्+ज्वल=उज्ज्वल
सत्+जन=सज्जन
जगत् +जननी= जगज्जननी
तत्+ जनित= तज्जनित
- यदि त् के बाद ट् ,ठ् हो तो त् को ट् हो जाता है ।
जैसे:-
बृहत् +टीका= बृहट्टीका
तत् +टीका=तट्टीका
- यदि त् के बाद ड् , ढ् हों तो त् को ड् हो जाता है ।
जैसे:-
उत्+ डीन=उड्डीन
उत्+डयन=उड्डयन
- यदि त् के बाद ल् हो तो त् को ल् हो जाता है ।
जैसे:-
तत्+लीन =तल्लीन
उत् +लास =उल्लास
- यदि त् के बाद श् हो तो त् को च् तथा श् को छ् हो जाता है ।
जैसे:-
उत् + शिष्ट =उच्छिष्ट
उत् + श्वास =उच्छवास
तत् + शिव =तच्छिव
सत् + शास्त्र =सच्छास्त्र
- त् के बाद ह् हो तो त् को द् तथा ह को ध् हो जाता है ।
जैसे-
पत् +हति =पद्धति
उत् +हार= उद्धार
उत् + हरण= उद्धरण
- यदि म् के बाद कोई स्पर्श व्यंजन(क से म तक) हो तो म् को उसी वर्ग का पांचवा अक्षर या अनुस्वार हो जाता है।
जैसे:-
सम् +भावना =संभावना
सम्+ तोष =संतोष
धनम् +जय =धनंजय
सम् +कल्प =संकल्प
सम् + मान = सम्मान
व्यंजन संधि की परिभाषा व नियम:-
- यदि म् के बाद अन्त:स्थ व्यंजन( य् र् ल् व्) हो तो, म् को सदैव अनुसार ही होता है ।
जैसे:-
सम्+सार =संसार
सम्+रक्षक =संरक्षक
- यदि ऋ्, र्, ष्, के बाद न् हो तो न् को ण् हो जाता है। चाहे उनके बीच में किसी भी स्वर व्यंजन या अनुस्वार आदि का व्यवधान/समस्या भी हो ।
जैसे :-
भूष्+अन =भूषण
ऋ+न= ऋण
प्र +मान=प्रमाण
राम+अयन=रामायण
- यदि छ् से पहले को ईश्वर हो लेकिन दोनों के बीच में से पहले जुड़ जाता है ।
जैसे:-
वि + छेद =विच्छेद
परि + छेद =परिच्छेद
आ+ छादन =आच्छादन
वट + छाया =वटच्छाया
अनु + छेद =अनुच्छेद
- यदि स से पहले (अ, आ )के अतिरिक्त कोई स्वर हो तो,स को ष हो जाता है।
जैसे:-
सु + सुप्ति=सुषुप्ति
वि + सम=विषम
- यदि ह्रस्व स्वर (इ, उ) के बाद आने वाले र् से परे र हो तो ह्रस्व स्वर को दीर्घ होकर पहले र् का लोप हो जाता है ।
जैसे:-
निर् +रस =नीरस
निर् +रव =नीरव
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