अलंकार की परिभाषा व प्रकार:-आज SSCGK आपसे अलंकार की परिभाषा व प्रकार के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे|
इससे पहले पोस्ट में आप प्रत्यय की परिभाषा व उदाहरण के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं।
अलंकार की परिभाषा व प्रकार:-
हिंदी भाषा में अलंकार का सामान्य अर्थ है- अलंकृत करना या शोभा बढ़ाना। हम जानते हैं कि जिस प्रकार स्त्रियां अपने सौंदर्य वृद्धि के लिए विभिन्न प्रकार के आभूषण धारण करती हैं, ठीक उसी प्रकार कवि भी अपने काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए अलंकारों का प्रयोग करते हैं। अलंकारों का प्रयोग करने से कविता को आकर्षक प्रभावशाली एवं सुंदर बनाया जा सकता है।
“काव्य में प्रयुक्त शब्द और अर्थ में चमत्कार उत्पन्न कर कविता की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहते हैं।”
अलंकार के मुख्य रूप से तीन प्रकार/ भेद होते हैं-
No.1.शब्दालंकार
No.2.अर्थालंकार
No.3 .उभयालंकार
अलंकार की परिभाषा व प्रकार फॉर एच एस एस सी:-
No.1. शब्दालंकार-काव्य में जहां शब्दों के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहां पर शब्द अलंकार होता है। शब्दालंकार में अगर शब्द विशेष को निकालकर उसका पर्यायवाची रख दिया जाए, तो वहां पर सारा चमत्कार समाप्त हो जाता है।
इसीलिए शब्दालंकार में शब्दों का विशेष महत्व होता है। जैसे:-
“कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वह खाए बौराय नर, इह पाये बौराय।”
उपरोक्त दोहे में प्रयुक्त कनक शब्द के अगर पर्यायवाची सोना, धतूरा, गेहूं इत्यादि रख दिए जाएं तो सारा चमत्कार समाप्त हो जाएगा।
शब्दालंकार के प्रकार-
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- श्लेष अलंकार
- पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार
हिंदी भाषा में अलंकार के भेदों का वर्णन फॉर एस एस सी :-
1.अनुप्रास अलंकार:-काव्य में जहां पर व्यंजन वर्णों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहां अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे:-
चारु चंद्र की चंचल किरणें,
खेल रही हैं जल थल में।
स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है,
अवनि और अंबर तल में।
उपरोक्त उदाहरण में ‘च’, ‘ल’ एवं ‘अ’ वर्ण की बार-बार आवृत्ति हुई है ।इसी कारण इसमें अनुप्रास अलंकार है।
हिंदी भाषा में अलंकार के भेदों का वर्णन एस एस सी सी जी एल :-
अनुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण :-
- तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए|
- मुदित महीपति मंदिर आये |
- सेवक सचिव सुमंत बुलाए|
2.यमक अलंकार:- काव्य में जहां किसी शब्द के एक से अधिक बार प्रयुक्त होने के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहां यमक अलंकार होता है। जैसे:-
“माला फेरत जुग गया, फिरा न मनका फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।”
उपरोक्त उदाहरण में ‘मनका’ शब्द का भिन्न भिन्न अर्थों में प्रयोग हुआ है।
मनका शब्द का एक अर्थ है- माला का मोती और दूसरा अर्थ है मन का। इसीलिए इसमें यमक अलंकार है।
यमक अलंकार का अन्य उदाहरण-
- तीन बेर खाती थी वो, तीन बेर खाती है।
- सजना है मुझे, सजना के लिए।
- उपरोक्त उदाहरणों में पहले उदाहरण में पहले तीन बेर का अर्थ है -तीन बार व दूसरे तीन बेर का अर्थ है- तीन बेर फल|
- दूसरे उदाहरण में पहले शब्द सजना का अर्थ है – श्रृंगार करना /तैयार होना तथा दूसरे शब्द सजना का अर्थ है- पति |
अलंकार की परिभाषा व प्रकार:-
3.श्लेष अलंकार:- काव्य में जहां पर प्रयुक्त शब्द के एक से अधिक अर्थात् अनेक अर्थ निकलें, वहां श्लेष अलंकार होता है।
जैसे:-
“रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून।”
उपरोक्त उदाहरण में प्रयुक्त पानी शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ निकल रहे हैं।
मोती के संदर्भ में-चमक
मानुष के संदर्भ में-इज्जत
चून के संदर्भ में-पानी
इसी कारण इस उदाहरण में श्लेष अलंकार है।
4.पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार:-काव्य में जहां पर किसी शब्द की बार-बार आवृत्ति हो, लेकिन अर्थ में भिन्नता ना हो, वहां पर पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है।
जैसे:-
“लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों की गरिमा।”
“डाल-डाल अली पिक के गायन का समां बंधा।”
“सूरज है जग का बुझा बुझा।”
“मीठा-मीठा रस टपकता।”
“झूम झूम मृदु गरज-गरज घनघोर।”
उपरोक्त उदाहरणों में प्रयुक्त शब्द लाख, कोटि, डाल, बुझा, झूम, गरज इत्यादि शब्दों की सामान्य अर्थों में पुनरावृति हुई है। इसी कारण इनमें पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
अलंकार की परिभाषा व प्रकार:-
No.2.अर्थालंकार:- जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है अर्थ अलंकार अर्थात जहां अर्थ के कारण चमत्कार उत्पन्न हो ।
काव्य में जहां शब्दों के अर्थ के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहां अर्थालंकार होता है।
“नील परिधान बीच सुकुमार,
खुल रहा मृदुल अधखुला अंग।
खिला हो ज्यों बिजली का फूल,
मेघवन बीच गुलाबी रंग।”
उदाहरण में नील परिधान उपमेय में बादल के भीतर, चमकने वाली बिजली उपमान की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार(अर्थालंकार) है।
1.उपमा अलंकार: काव्य में जहां रूप, रंगो या गुण के कारण उपमेय की उपमान से तुलना की जाए, वहां उपमा अलंकार होता है। उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं-
(१).उपमेय -जिसकी क्षमता की जाती है, उसे उपमेय कहते हैं
(२).उपमान -जिससे क्षमता की जाती है, उसे उपमान का कहते हैं।
(३).वाचक शब्द -उपमेय और उपमान की क्षमता प्रकट करने वाले शब्द को वाचक शब्द कहते हैं।
(४).साधारण धर्म-उपमेय और उपमान में गुण की समानता को साधारण धर्म कहते हैं।
जैसे:-
“पीपर पात सरिस मन डोला।”
उपरोक्त उदाहरण में
उपमेय -मन
उपमान -पीपर पात
वाचक शब्द –सरिस
साधारण धर्म-डोला|
उपमा अलंकार का अन्य उदाहरण:-
“मुख बाल-रवि सम
लाल होकर ज्वाला-सा बोधित हुआ।”
उपरोक्त उदाहरण में क्रोध से लाल मुख की तुलना प्रातः कालीन सूर्य से की गई है।
अलंकार की परिभाषा व प्रकार:-
2.रूपक अलंकार:- काव्य में जहां उपमेय में उपमान का आरोप हो, वहां रूपक अलंकार होता है। जैसे:-
“मैया मैं तो चंद्र-खिलौना लेहौं।”
उपरोक्त उदाहरण में चंद्र उपमेय पर उपमान खिलौना का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।
रूपक अलंकार के उदाहरण-
बीती विभावरी जाग री।
अंबर-पनघट में डुबो रही, तारा-घट ऊषा नागरी।
उपरोक्त उदाहरण में अंबर पर कुए का सितारों पर घड़े का तथा उषा पर नागरी का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।
“माया दीपक नर पतंग,
भ्रमि भ्रमि इवै पड़ंत।”
उपरोक्त उदाहरण में ‘माया’ उपमेय पर ‘दीपक’ उपमान का तथा ‘नर’ उपमेय पर ‘पतंग’ उपमान का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।
3.उत्प्रेक्षा अलंकार:- काव्य में जहां उपमेय में उपमान की संभावना पाई जाए, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है ।इस अलंकार में जनु, मनु, जानो, मानो, ज्यों इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है। जैसे-
“उस काल मारे क्रोध के, तनु कांपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।”
उपरोक्त उदाहरण में क्रोधित अर्जुन उपमेय में सागर उपमान की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।
अन्य उदाहरण-
“कहती हुई यों उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए।
हिमकणों से पूर्ण मानो, हो गए पंकज नए।।”
उपरोक्त उदाहरण में आंसुओं से भरे हुए उत्तरा के नेत्रों (उपमेय) में ओस की बूंदों से युक्त कमलों (उपमान) की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार का अन्य उदाहरण-
सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात।
मानो नीलमणि शैल, आतप परयो प्रभात।।
उत्प्रेक्षा अलंकार का अन्य उदाहरण-
नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अंग |
खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघवन बीच गुलाबी रंग ||
अलंकार की परिभाषा व प्रकार:-
4.मानवीकरण अलंकार:-काव्य में जहां जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप होता है, वहां मानवीकरण अलंकार होता है ।
जैसे:-
“दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है,
वह संध्या सुंदर परी सी।”
उपरोक्त उदाहरण में सूर्यास्त के समय संध्या को एक परी के समान धीरे-धीरे आकाश से उतरते हुए दिखाया गया है । इसी कारण यहां मानवीकरण अलंकार है।
5.अन्योक्ति अलंकार:-काव्य में जहां अप्रस्तुत(उपमान) के माध्यम से प्रस्तुत (उपमेय) के अर्थ का बहुत कराया जाता है ।
अर्थात जहां उपमान के माध्यम से उपमेय के वर्णन से उपमान अप्रस्तुत और उपमेय प्रस्तुत होता है।
जैसे:-
“नहिं पराग, नहिं मधुर मधु, नहिं विकास एहि काल।
अलि कली ही सो बंध्यो, आगे कौन हवाल।”
उपरोक्त उदाहरण में उपमान भंवरे और कली के माध्यम से उपमेय राजा जयसिंह की नवोढ़ा नायिका की ओर संकेत किया गया है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार राजा जयसिंह अपनी कम उम्र की प्रेमिका के प्रति कितना अधिक आसक्त हो गया है। इस उदाहरण में अन्योक्ति अलंकार है।
जैसे-
“जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सुबीति बहार।
अब अलि रही गुलाब में, अपत कंटीली डार।”
उपरोक्त उदाहरण में गुलाब के सूखने के माध्यम से आश्रय दाता के उजड़ने की व्यथा प्रकट की गई है। इसी कारण इसमें अन्योक्ति अलंकार है।
अलंकार की परिभाषा व प्रकार:-
6.अतिशयोक्ति अलंकार:-अतिशयोक्ति का अर्थ है किसी भी बात को बहुत ज्यादा बढ़ा चढ़ा कर कहना।
काव्य में जहां किसी वस्तु का वर्णन इतना बढ़ा चढ़ाकर किया जाए कि वह लोक सीमा ही लांघ जाए, तो वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
जैसे:-
“आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार ।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।”
उपरोक्त उदाहरण में, महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के पराक्रम का बहुत अधिक बढ़ा चढ़ाकर वर्णन किया गया है। इसी कारण यहां अतिशयोक्ति अलंकार है।
अन्य उदाहरण-
“हनुमान की पूंछ को लगन न पाई आग ।
लंका सगरी जल गई गए निशाचर भाग।।”
उपरोक्त उदाहरण में हनुमान की पूंछ को आग लगना और लंका का जल जाना आदि का, इतना अधिक बढ़ा चढ़ाकर वर्णन किया गया है , कि यह लोक सीमा ही लांघ गया है । इसी कारण यहां अतिशयोक्ति अलंकार है।
अलंकार की परिभाषा व प्रकार-
7.विभावना अलंकार- जहां कारण के बिना ही कर्म कार्य को किया जाता है वहां पर विभावना अलंकार होता है|
उदाहरण:-
बिनु पग चलै, सुनै बिनु काना।
कर बिनु करम, करै विधि नाना।।
8. प्रतीप अलंकार- प्रतीप का अर्थ होता है -उल्टा। काव्य में जहां उपमेय को उपमान के समान न कहकर उपमेय को ही उपमान कहा जाता है, वहां पर प्रतीप अलंकार होता है।
जैसे-
“उतरि नहाए जमुन जल,
जो शरीर सम श्याम।”
उपरोक्त काव्यांश में यमुना के श्याम जल की समानता श्रीराम के शरीर से लेकर उसे रूप में बना दिया है।इसी कारण यहां प्रतीप अलंकार है।
अलंकार की परिभाषा व प्रकार:-
9.दृष्टांत अलंकार- काव्य में जिस अलंकार में उपमेय के रूप में कही गई बात से मिलती जुलती बात उपमान के रूप में दूसरे वाक्य में होती है, वहां पर दृष्टांत अलंकार होता है।
जैसे:-
“एक म्यान में दो तलवारें, कभी नहीं रह सकती हैं।
किसी और पर प्रेम पति का, नारियां क्या सह सकती हैं।”
10.भ्रांतिमान अलंकार- काव्य में जहां उपमेय में उपमान के होने का भ्रम हो, वहां पर भ्रांतिमान अलंकार होता है।
जैसे:-
“पायें महावर देन को, नाईन बैठी आए ।
फिरि फिरि जानि महावरी,एडी भिड़त जाए।।”
11.दीपक अलंकार- काव्य में जहां पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही धर्म स्थापित किया जाता है, वहां पर दीपक अलंकार होता है।
उदाहरण-
देखैं तें मन भरै, तन की मिटे न भूख।
बिन चाखै रस नहीं मिले,आम कामिनी ऊख।।
इस उदाहरण में उपमेय(कामिनी) और उपमान(आम एवं ऊख) के लिए एक ही साधारण धर्म का प्रयोग किया गया है। इसीलिए यहां दीपक अलंकार है।
“चंचल निशि उदवस रहें करत प्रात वसिराज।
अरविंदन में इंदिरा, सुंदरी नैनन लाज।।”
अलंकार की परिभाषा व प्रकार-
12.संदेह अलंकार- काव्य में जहां अत्यंत सादृश्यता के कारण उपमेय में और उपमान में संशय उत्पन्न हो जाए, वहां पर संदेह अलंकार होता है।
जैसे:-
“सारी बीच नारी है या नारी बीच सारी है।
कि सारी की नारी है, कि नारी की ही सारी है।।”
13.वक्रोक्ति अलंकार –काव्य में जहांकिसी उक्ति का अर्थ जानबूझकर वक्ता के अभिप्राय से अलग लिया जाता है, वहां वक्रोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
कौन हो तुम,
घनश्याम हैं हम,
तो कहीं बरसो जाए……..।
रोको, मत जाने दो।
रोको मत, जाने दो।
14.वीप्सा अलंकार- काव्य में जहां हर्ष, उत्साह, शोक, घृणा जैसे मनोभावों को व्यक्त करने वाले शब्दों (विशेषकर विस्मयादिबोधक शब्द) का बार बार प्रयोग हो, वहां वीप्सा अलंकार होता है।
जैसे-
आह ! वह मुख पश्चिम के व्योम।
अरे अरे ! दूर हटो।
छि: छि: दूर हटो।