भारत की प्रमुख मृदाएं-आज इस आर्टिकल में SSCGK आपसे भारत की प्रमुख मृदाएं के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे| इससे पहले आर्टिकल में आप भारत के प्रमुख जलप्रपात के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं|
भारत की प्रमुख मृदाएं-
हमारा देश भारत एक प्राकृतिक विविधताओं वाला देश है| हमारे यहाँ अनेक प्रकार की विविधताये (जैसे- जलवायु ,लोगों के रीति रिवाज, भाषा , धर्म , मिट्टी आदि) पाई जाती हैं| जैसा कि आप जानते हो कि मृदा शब्द की उत्पति अंग्रेजी भाषा के Soil शब्द से हुई है और Soil शब्द लैटिन भाषा के Solum शब्द से बना है | भूपर्पटी के सबसे ऊपरी स्तर में पाए जाने वाले ठोस, तरल और गैसीय पदार्थों का मिश्रण के मिश्रण को ही मृदा कहते है। मृदा का निर्माण जैविक, भौतिक और रासायनिक प्रक्रियाओं के एक लंबी अवधि तक बने रहने से होता है।
अलग अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न प्रकार की मृदायें पाई जाती है| इसी कारण यहाँ पेड़-पौधों, फसलों तथा घासों में भी भिन्नता पाई जाती है। जहाँ तक मिट्टी का सवाल है मिट्टी के निर्माण को कई कारक प्रभावित करते हैं| मिट्टी के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं – जलवायु ,पैतृक शैल, वनस्पति, भूमिगत जल, सूक्ष्म जीव|
भारत की प्रमुख मृदाएं फॉर एसएससी –
भारत में पाई जाने वाली मृदाओं ( मिट्टियों )के प्रकार-भारत में मुख्यतः 8 प्रकार की मृदायें पी जाती है जिनका वर्णन निम्नलिखित है –
No.1. जलोढ़ मृदा
No.2.काली मृदा
No.3.पर्वतीय मृदा
No.4.लेटराइट मृदा
No.5.लाल मृदा
No.6. मरूस्थलीय मृदा
No.7.लवणीय एवं क्षारीय मृदा
No.8.पीट एवं दलदली मृदा
भारत की प्रमुख मृदाएं फॉर एचएसएससी –
No.1. जलोढ़ मृदा- पहाड़ी क्षेत्रों से वह कराने वाली नदियां अपने साथ पहाड़ी मृदा को भी बहा कर ले आती हैं
और मैदानी इलाकों में बिछा देती हैं। यह बहुत ही उपजाऊ मिट्टी होती है। इसे कछारी मृदा/दोमट मृदा भी कहा
जाता है। इस प्रकार की मृदा उत्तर भारत में गंगा सतलुज के मैदान से लेकर ब्रह्मपुत्र के मैदान तक पाई जाती है।
इसके अतिरिक्त यह पूर्वी तटीय भागों में गोदावरी, महानदी, कृष्णा व कावेरी के डेल्टाई क्षेत्रों में पाई जाती है।
यह मिट्टी पंजाब,हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान के उत्तरी भाग, बिहार, पश्चिमी बंगाल तथा असम के आधे भाग
में पाई जाती है| भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग में पूर्वी तट पर भी जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है| यह कृषि के लिए
बहुत उपयोगी होती है| यह मृदा गुजरात तथा केरल राज्य में थोड़ी मात्रा में पाई जाती है। यह दो प्रकार की होती है-
1.खादर
2.बांगर
1.खादर-इस प्रकार की मृदा बाढ़ ग्रस्त नदी के आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती है। बाढ़ के कारण इस प्रकार की
मृदा का हर साल नवीनीकरण हो जाता है यह मृदा बहुत उपजाऊ होती है।
2.बांगर-इस प्रकार की मृदा नदी से दूर स्थित क्षेत्रों में पाई जाती है। यह खादर की अपेक्षा कम उपजाऊ होती है।
इसका हर वर्ष नवीनीकरण नहीं हो पाता है।
Bharat Ki Pramukh Mridayen For SSC CHSL:-
No.2. काली मृदा-काली मृदा का दूसरा नाम लावा मृदा है। इसे कपास की मिट्टी या रेगड़ मिट्टी भी कहते हैं|
इसका निर्माण लावा चट्टानों के टूटने से हुआ है। भारत में यह गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक व
उत्तर प्रदेश (झांसी तथा ललितपुर) में पाई जाती है। इसमें जल धारण करने की क्षमता सबसे अधिक होती हैं।
यह कपास की खेती के लिए बहुत ही उपयोगी होती है।
Bharat Ki Pramukh Mridayen For SSC CGL:-
No.3. पर्वतीय मृदा- इस प्रकार की मृदा में कंकड़ एवं पत्थर की मात्रा अधिक पायी जाती है। इसमें पोटाश,
फास्फोरस एवं चूने की कमी भी पायी जाती है। नागालैंड के पहाड़ी क्षेत्र में झूम खेती सबसे अधिक की जाती है।
भारत में सबसे अधिक गरम मसाले की खेती पर्वतीय क्षेत्रों में होती है।
No.4. लेटराइट मृदा-इस प्रकार की मृदा में आयरन तथा एलुमिनियम के ऑक्साइट की मात्रा अधिक पाई
जाती है| इस प्रकार की मिट्टी के क्षेत्र पश्चिम बंगाल से असम तक, दक्षिणी प्रायद्वीप के दक्षिण-पूर्व की ओर
पतली पट्टी के रूप में मिलते हैं|
भारत की प्रमुख मृदाएं-
No.5. लाल मृदा- लाल मृदा भारत के 18% क्षेत्र म पाई जाती है। इसमें आयरन ऑक्साइड की मात्रा अधिक
होती है। इसी कारण इसका रंग लाल होता है| लाल मृदा चट्टानों की कटी हुई मिट्टी है| यह मिट्टी अधिकतर
दक्षिणी भारत में मिलती है. लाल मिट्टी के क्षेत्र मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग में, छत्तीसगढ़ में, झारखण्ड के छोटा
नागपुर प्रदेश में, उड़ीसा में, पश्चिमी बंगाल में,महाराष्ट्र के दक्षिण-पूर्वी भाग में, तेलंगाना में, आंध्रप्रदेश में,
मद्रास में और मैसूर तक फैले हुए हैं|
No.6. मरूस्थलीय मृदा- मरूस्थलीय मिट्टी ऐसी मिट्टी होती है, जिसमें फास्फोरस एवं घुलनशील लवण मात्रा
में पाए जाते हैं । मरूस्थलीय मृदा में नाइट्रोजन एवं कार्बनिक की मात्रा ज्यादा नही होती है। यह मिट्टी राजस्थान
के थार प्रदेश में और राजस्थान के कुछ अन्य भागों में मिलती है| इस प्रकार की मृदा के लिये आपके पास जल
की अच्छी व्यवस्था होनी जरूरी नहीं है। इस मृदा में भी अच्छी फसल का उत्पादन किया जाता है| इसमें ज्वार,
बाजरा एवं रागी की फसल की पैदावार अच्छी होती है। यह मिट्टी तिलहन की फसलों(तिल,मूंगफली सरसों )के
उत्पादन के लिए अधिक उपयोगी होती है।
भारत की प्रमुख मृदाएं-
No.7.लवणीय एवं क्षारीय मृदा- इस प्रकार की मृदा को क्षारीय मिट्टी, रेह मिट्टी, उसर मिट्टी एवं कल्लर मिट्टी
भी कहा जाता है। ऐसे क्षेत्र जिनमे जल के निकास की सुविधा नहीं पायी जाती है उन क्षेत्रों में क्षारीय मिट्टी पायी
जाती है। इस प्रकार की मिट्टी में सोडियम, कैल्शियम एवं मैग्नीशियम की मात्रा अधिक पायी जाती है| इसी कारन
से यह मिट्टी क्षारीय हो जाती है। इसमें नाइट्रोजन की मात्रा कम पायी जाती है। समुद्र तटीय मैदान में क्षारीय
मिट्टी का निर्माण अधिक होता है।अपने भारत देश में क्षारीय मिट्टी पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान एवं
केरल के तटवर्ती क्षेत्र में पायी जाती है| केरल के तटवर्ती क्षेत्र में नारियल की अच्छी खेती की जाती है|
भारत की प्रमुख मृदाएं-
No.8. पीट एवं दलदली मृदा-इस प्रकार की मृदा ज्वार वाले क्षेत्रों में पाई जाती है| भारत में यह सुंदरवन वाले क्षेत्र में में पाई जाती है| इसमें सबसे अधिक ह्यूमस पाया जाता है| इस प्रकार की मृदा का निर्माण गीली मिट्टी में वनस्पतियों के सड़ने से होता है|