पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी - SSC GK

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी

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पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी
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पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी:-इस आर्टिकल में आज SSCGK आपसे पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। इससे पहले पोस्ट में आप जल चक्र क्या है के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं।

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी:-

यहाँ हम आपको स्पष्ट रूप से बताना चाहते हैं  कि पर्यावरण शब्द दो शब्दों के योग से मिलकर बना है– परि + आवरण। अर्थात हमारे चारों ओर का आवरण। इसका अर्थ यह हुआ कि ऐसा आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है, पर्यावरण कहलाता है। यह आवरण जैन एवं अजैव कार को का बना होता है। इसी कारण से हम कह सकते हैं किसी जीव के चारों ओर फैली हुई जैविक एवं अजैविक कार को से निर्मित दुनिया, जिसमें वह निवास करता है, पर्यावरण या वातावरण कहलाता है।

पर्यावरण के प्रकार:- यह पर्यावरण दो प्रकार का होता है-

नं.1. जैविक पर्यावरण

नं.2. अजैविक पर्यावरण

Environment and Ecology-

नं.1. जैविक पर्यावरण- जैविक पर्यावरण के 5 घटक होते हैं-मृदा, वायु, जल, प्रकाश एवं ताप।

नं.2. अजैविक पर्यावरण- अजैविक पर्यावरण के चार घटक होते हैं-पौधे, जंतु, मनुष्य, एवं सूक्ष्म जीव।

हमारी पृथ्वी भी पर्यावरण के चार आवरणों से घिरी हुई है, जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

No.1. जलमंडल (Hydrospher

No.2. स्थल मंडल (Lithosphere)

No.3. वायुमंडल (Atmosphere)

No.4. जीवमंडल (Biosphere)

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी:-

ऊपर बताए गए यह चारों घटक मिलकर ही पर्यावरण का निर्माण करते हैं।

No.1. जलमंडल (Hydrospher)- पृथ्वी के धरातल पर पाये जाने वाले खारे एवं मीठे जल की कुल मात्रा को जलमंडल कहलाता है। पृथ्वी के इस भूमंडल पर 71 प्रतिशत मात्रा में जल पाया जाता है, जबकि 29% भाग पर स्थल है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले संपूर्ण जलमंडल का 2.7% भाग धरातल पर पाया जाता है जबकि  97.3 प्रतिशत भाग सागरों एवं महासागरों में पाया जाता है।

No.2. स्थल मंडल (Lithosphere)-स्थल मंडल पृथ्वी की ऊपरी मोटी परत को कहा जाता है, जो शैलों से निर्मित/बनी हुई है। स्थल भाग एवं महासागरीय भाग में स्थल मंडल की मोटाई भिन्न भिन्न है। उदाहरण के तौर पर महासागरों में थल मंडल 5 किलोमीटर की मोटाई रखता है जबकि महाद्वीपीय स्थलमंडल की मोटाई 35 किलोमीटर गहराई/नीचे तक है।

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी:-

No.3. वायुमंडल (Atmosphere)-पृथ्वी के चारों ओर फैली हुई गैसों के आवरण को वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल में नाइट्रोजन की मात्रा 78.03%, ऑक्सीजन की 20.99%, आर्गन की 0.931%, एवं कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा 0.03% पाई जाती है । पृथ्वी की धरातल से लगभग 80 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर वायुमंडल में उपरोक्त गैसों का अनुपात लगभग एक समान रहता है।

No.4. जीवमंडल (Biosphere)-जीवमंडल स्थलमंडल वायुमंडल एवं जल मंडल पारस्परिक क्रिया से निर्मित है। इस मंडल को ही जीव मंडल कहते हैं।

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी:-

पारिस्थितिकी (Ecology)-

पर्यावरण एवं जीव समुदाय के आपसी/पारस्परिक संबंधों के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहा जाता है।

पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों की अंतर क्रिया से निर्मित/विकसित तंत्र को पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं। यह एक ऐसा तंत्र होता है जिसमें ऊर्जा एवं सामग्री का लगातार प्रवाह होता रहता है। पारिस्थितिकी तंत्र नामक शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1935 में आर्थर टांस्ले नामक भू-विज्ञानी ने किया था।

पारिस्थितिकी तंत्र के दो अवयव होते हैं-

नं.1. जैविक अवयव

नं.2. अजैविक अवयव

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी:-

नं.1. जैविक अवयव –

(i). उत्पादक-(हरे पौधे)- हरे पेड़ पौधे अपना भोजन बनाने के लिए सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड गैस लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, इस क्रिया को प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कहते हैं।पेड़ पौधों को अपना भोजन बनाने के लिए अन्य जीवो पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है इसी कारण इन्हें स्वयंपोषी(autotrophs) कहा जाता है।

(ii). उपभोक्ता-जंतु (पौधों को खाने वाले)-जिन जीवो को अपने भोजन के लिए दूसरे खाद्य उत्पादकों पर निर्भर रहना पड़ता है, उन्हें उपभोक्ता जंतु कहा जाता है। धरती के सभी जीव जंतु उपभोक्ता जंतुओं की श्रेणी में आते हैं। इन सभी जीव जंतुओं को अपने भोजन के लिए अरे पौधों पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे जीवो को परपोषी जीव कहा जाता है। उपभोक्ताओं को भी तीन भागों में बांटा जाता है-

(क). प्राथमिक उपभोक्ता-ग्रास हॉपर, गाय, भैंस, हिरण, खरगोश आदि।

(ख). द्वितीयक उपभोक्ता-मेंढक, शेर, बाघ, पक्षी, सर्प आदि।

(ग). तृतीयक उपभोक्ता-शेर, बाघ, चीता, गिद्ध आदि।

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी:-

आहार श्रृंखला-

घास >ग्रास हॉपर >मेंढक >सर्प >गिद्ध

पौधे >कृमि>चिड़िया >बिल्ली

(iii). अपघटनकर्ता-सूक्ष्म जीव

नं.2. अजैविक अवयव-पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के मृत शरीर तथा जंतुओं द्वारा उत्सर्जित पदार्थों का जीवाणु द्वारा अपघटन किया जाता है। इसी कारण से जीवाणु या कवक अपघटन कर्ता कहलाते हैं।

जीवो के मृत शरीर >अकार्बनिक पदार्थ>नाइट्रोजन और ऑक्सीजन वायुमंडल में तथा ठोस एवं तरल पदार्थ धरातल में चले जाते हैं।

(i).भौतिक वातावरण -मृदा, जल तथा वायु

(ii).पोषण-कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ

(iii).जलवायु –सूर्य की रोशनी, तापक्रम, आर्द्रता व दाब

उत्पादक(पेड़ पौधे)> उपभोक्ता(जीव जंतु) >अपघटनकर्ता(सूक्ष्म जीव)

आहार श्रृंखला के चार स्तर होते हैं-

१. प्रथम पोषी स्तर– उत्पादक घास(उत्पादक)

२. द्वितीयक पोषी स्तर-प्राथमिक उपभोक्ता(ग्रास हॉपर)

३. तृतीयक पोषी स्तर-द्वितीयक उपभोक्ता(गिरगिट)

४. चतुर्थ पोषी स्तर– तृतीयक उपभोक्ता(बाज)

Jagminder Singh

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