लिपि की परिभाषा एवं महत्व- आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको लिपि की परिभाषा एवं महत्व के बारे में विस्तार से समझाएंगे। इससे पहले आप भाषा किसे कहते हैं के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं।
लिपि की परिभाषा एवं महत्व-
किसी भाषा भी के लिखने के ढंग या भाषा की लिखावट को लिपि कहा जाता है।
सामान्य शब्दों में लिपि का अर्थ होता है– किसी भी भाषा को लिखने का ढंग। अन्य शब्दों में ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वह लिपि कहलाती है। लेकिन भाषा और लिपि दो अलग अलग चीज़ें होती हैं। भाषा तो वह साधन होता है जिससे हम अपने मन के विचार दूसरों के सामने लिखकर या बोलकर प्रकट करते हैं, जबकि किसी भाषा की लिखने के ढंग को लिपि कहा जाता है।
लिपि किसे कहते हैं ?
“मुख से निकलने वाली ध्वनियों को लिखने के लिए प्रयोग किए जाने वाले चिह्नों को लिपि कहते हैं।”
मानक लिपि-“किसी भाषा की लिखने के लिए निर्धारित किये गये मानक चिह्नों को मानक लिपि कहते हैं |”
जैसे- हिंदी भाषा को लिखने के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जाता है वही अंग्रेजी को लिखने के लिए रोमन लिपि का प्रयोग किया जाता है ।
लिपि की परिभाषा एवं महत्व-
जैसे– गुरुमुखी , रोमन , पंजाबी, देवनागरी, गुजराती, उड़िया, टाकरी ,कैथी इत्यादि.
भारत की 22 भाषाएं और उनकी लिपि-
भारत की 22 भाषाएं और उनकी लिपि निम्न प्रकार है, इसे संविधान में विशेष दर्जा प्राप्त है।
भाषा का नाम लिपि का नाम
हिंदी -देवनागरी
सिंधी -देवनागरी/फ़ारसी
पंजाबी -गुरुमुखी
कश्मीरी -फ़ारसी
गुजराती -गुजराती
मराठी -देवनागरी
उड़िया -उड़िया
बांग्ला -बांग्ला
असमिया -असमिया
उर्दू -फ़ारसी
तमिल -ब्राह्मी
तेलुगु -ब्राह्मी
मलयालम -ब्राह्मी
कन्नड़ -कन्नड़/ब्राह्मी
कोंकणी -देवनागरी
संस्कृत -देवनागरी
नेपाली -देवनागरी
संथाली -देवनागरी
डोंगरी -देवनागरी
मणिपुरी -मणिपुरी
वोडों -देवनागरी
मैथिली -देवनागरी/मैथिली
Lipi ki Paribhasha evm Mahatv-
लिपि का महत्व- आइए अब जानने की कोशिश करते हैं कि हमारे जीवन में लिपि का क्या महत्व है?
बोलते समय हमारे मुख से निकलने वाली ध्वनियां आकाश में जाकर समा जाती है क्योंकि उनका स्थायित्व
नहीं होता है। जब हम किसी को अपने विचारों को समझाना चाहते हैं, तो यदि वह हमारे निकट रहते हैं, तो
हमारी वाणी से निकली हुई ध्वनियों को सुनकर वह हमारे विचारों को समझ लेते हैं। और अगर वह हमारे
निकट ना हो या कहीं दूर दूसरे जगहों पर हो तो वह हमारी ध्वनियों को नहीं सुन पाएंगे, तो इसके लिए
ध्वनियों को लिखित रूप देकर हम उन्हें समझा सकते हैं।
इस प्रकार से अपने विचार विनिमय में स्थायित्व प्रदान करने के लिए तथा दूरस्थ लोगों को लाभान्वित करने के
लिए इन ध्वनियों के कुछ चिह्न बना लिए गए हैं। इन्हीं ध्वनियों चिन्हों के द्वारा मनुष्य हजारों और लाखों मिल दूर
रहने वाले लोगों के साथ विचारों का आदान प्रदान कर लेता है। इसी कारण से लिपि का विकास हुआ ताकि
हम अपने विचारों को लिखित रूप देकर, किसी को भी आसानी से समझा सके और हम अपने विचारों को
लिखित रूप देखकर आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध करा सकें।
लिपि की परिभाषा एवं महत्व-
ध्वनि और लिपि में क्या अंतर है?
ध्वनि और लिपि में अंतर निम्नलिखित है-
१.ध्वनिया अस्थाई होती है परंतु लिपि स्थाई होती है ।
२.ध्वनि वाणी से निकलती हैं किंतु ध्वनियों को लिपि के जरिए लिखित रूप दिया जाता है।
३.ध्वनि के जरिए विचारों का आदान-प्रदान निकट में होता है किंतु लिपि के जरिए दूर तक।
४.वाणी से जो निकलती है ध्वनि कहलाती हैं, किंतु जिस रूप में वर्ण लिखे जाते हैं लिपि कहलाती है
भाषा और लिपि में क्या अंतर है?
भाषा और लिपि में अंतर निम्नलिखित है –
१.भाषा श्रव्य होती है जबकि लिपि दृश्य ।
२.भाषा स्वतंत्र होती है जबकि लिपि भाषा पर निर्भर होती है।
३.भाषा का विकास पहले होता है फिर लिपि बनती है।
४.भाषा और स्थाई होती है जबकि लिपि अपेक्षाकृत स्थाई होती है।
५.भाषा छोटी होती है जबकि लिपि भाषा का ही विस्तृत रूप है ।
६.भाषा विचारों और भावों को ध्वनि संकेतों के माध्यम से व्यक्त करने का एक साधन है, जबकि लिपि उसी भाषा को लिखित रूप देने की व्यवस्था।