व्याकरण की परिभाषा :-इस आर्टिकल में आज स्स्कग्क आपसे व्याकरण की परिभाषा के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे |
हिंदी में व्याकरण की परिभाषा:-
“व्याकरण शास्त्र है जिसके द्वारा हमें किसी भाषा को शुद्ध पढ़ना, शुद्ध लिखना व शुद्ध बोलना आ जाए, उसे व्याकरण कहते हैं।”
यह बात तो स्पष्ट है कि व्याकरण भाषा को शुद्धता प्रदान करता है तथा उसे नियमबद्ध करता है।जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि भाषा व्यक्ति के जीवन की अमूल्य निधि है और अपने अपने जीवन में हम सभी इसका प्रयोग अपनी सुविधानुसार करते है| अपने दैनिक जीवन में जब आप इसका (भाषा का) प्रयोग नहीं करते हो अर्थात व्यवहार में नहीं लाते हो तो इसमें स्थिरता नहीं रहती| हम यह भली-भांति जानते हैं कि भाषा परिवर्तनशील है| इस पर व्यक्ति विशेष की विशेषता का प्रभाव भी पड़ता है| यह तो सभी जानते है कि विकास का नाम ही परिवर्तन है| इसलिए ही भाषा के इस बनते बिगड़ते स्वरुप को शुद्ध बनाए रखने के लिए कुछ नियम बनाये गए हैं| भाषा को स्थायित्व प्रदान करने के लिए बनाये गये इन नियमो को, व्याकरणविदों द्वारा व्याकरण की संज्ञा दी गई है|
हिन्दी व्याकरण की विशेषताएँ-
यद्यपि हिन्दी-व्याकरण संस्कृत व्याकरण पर आधारित होते हुए भी अलग से अपनी कुछ विशेषताएँ रखता है। इस भाषा के व्याकरण में संस्कृत व्याकरण की देन भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। पं० किशोरीदास वाजपेयी ने लिखा है कि ”हिन्दी ने अपना व्याकरण प्रायः संस्कृत व्याकरण के आधार पर ही बनाया है- क्रियाप्रवाह एकान्त संस्कृत व्याकरण के आधार पर है, पर कहीं-कहीं मार्गभेद भी है। मार्गभेद वहीं हुआ है, जहाँ हिन्दी ने संस्कृत की अपेक्षा सरलतर मार्ग ग्रहण किया है।”
ध्वनि और लिपि क्या होती हैं?
ध्वनि- हम जानते हैं की मनुष्य और पशु दोनों की ही ध्वनियाँ होती हैं। जैसे -कुत्ते का भूँकना और बिल्ली का म्याऊँ-म्याऊँ करना आदि पशुओं के मुँह से निकली ध्वनियाँ हैं।
वैसे ध्वनि तो निर्जीव वस्तुओं की भी होती है|
जैसे- पानी का वेग, वस्तु का कम्पन आदि।
व्याकरण की परिभाषा:-
इस तथ्य से सभी परिचित ही हैं कि व्याकरण में केवल मनुष्य के मुँह से निकली या उच्चरित ध्वनियों पर विचार किया जाता है। मनुष्यकई प्रकार की ध्वनियाँ उच्चरित करता है- एक प्रकार की तो वे ध्वनियाँ हैं, जो मनुष्य के किसी क्रियाविशेष से निकलती हैं|
जैसे- चलने की ध्वनि।
दूसरी नं. पर वे ध्वनियाँ हैं, जो मनुष्य की अनिच्छित क्रियाओं से उत्पत्र होती है|
जैसे- खर्राटे लेना या जँभाई लेना।
तीसरे नं. पर वे ध्वनियाँ हैं, जिनका उत्पादन मनुष्य के स्वाभाविक कार्यों द्वारा होता है; जैसे- कराहना।
चौथे नं. पर वे ध्वनियाँ हैं, जिन्हें मनुष्य अपनी इच्छा से अपने मुँह से उच्चरित करता है। इन्हें हम वाणी या आवाज कहते हैं।
लिपि – लिपि शब्द का अर्थ है –‘लीपना ‘या ‘पोतना ‘ विचारो का लीपना अथवा लिखना ही लिपि कहलाता है।
अन्य शब्दों में,
“किसी भाषा की लिखाई के लिए निर्धारित किए गए मानक चिन्हों को लिपि कहते हैं।” लिपि भाषा को स्थायित्व आकार प्रदान करती है। हिंदी और संस्कृत भाषा की लिपि का नाम देवनागरी लिपि है। अंग्रेजी भाषा की लिपि रोमन पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी और उर्दू भाषा की लिपि फारसी है।
हिन्दी में लिपि चिह्न-
देवनागरी के वर्णो में ग्यारह स्वर, दो आयोगवाह और उनतालीस व्यंजन हैं।
व्यंजन के साथ स्वर का संयोग होने पर स्वर का जो रूप होता है, उसे मात्रा कहते हैं|
जैसे-
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ
ा ि ी ु ू ृ े ै ो ौ
क का कि की कु कू के कै को कौ
हिंदी व्याकरण के तीन अंग होते हैं-
No.-1.वर्ण विचार
No.-2.शब्द विचार
No.-3.वाक्य विचार
व्याकरण की परिभाषा व भेद
No.-1. वर्ण विचार– इसके अंतर्गत हिंदी भाषा के अक्षरों के उच्चारण,आकार,वर्गीकरण , मेल व वर्णमाला आदि नियमों का वर्णन किया जाता है।
“वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके और टुकड़े ना हो सके उसे वर्ण कहते हैं।”
हिंदी भाषा में कुल 52 वर्ण हैं जिनमें से 11 स्वर, 33 व्यंजन, एक अनुस्वार(अं) और एक विसर्ग (अ:) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त हिंदी में वर्णमाला में चार संयुक्त व्यंजन( क्ष,त्र,ज्ञ,श्र) और दो द्विगुण व्यंजन ( ड़, ढ़ ) होते हैं।
हिंदी भाषा की लिपि का नाम ‘देवनागरी‘ है। वर्ण दो प्रकार के होते हैं
No.-1. स्वर
No.-2. व्यंजन
स्वर– जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता के स्वतंत्र रूप से होता है उन्हें स्वर कहते हैं ।
हिंदी में कुल 11 स्वर होते हैं ।
जैसे- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ आदि।
व्यंजन– जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से हो ,उन्हें व्यंजन कहते हैं ।
हिंदी में कुल 33 व्यंजन होते हैं ।
जैसे -क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ आदि।
>कवर्ग – क ख ग घ ङ (कंठ)
>चवर्ग– च छ ज झ ञ (तालु)
>टवर्ग- ट ठ ड ढ ण (मूर्धा)
>तवर्ग– त थ द ध न (दांत)
>पवर्ग– प फ ब भ म (ओष्ठ)
No.-2. शब्द विचार-इसके अंतर्गत हिंदी भाषा के शब्द की परिभाषा, भेद, संधि, संधि- विच्छेद व निर्माण आदि से संबंधित नियमों का वर्णन किया जाता है।
“वर्णों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं”। शब्द भाषा की सार्थक इकाई है।
हिंदी व्याकरण में वर्गीकरण
शब्दों का वर्गीकरण चार प्रकार से किया जाता है
No.-1. अर्थ के आधार पर–
१ सार्थक शब्द-जिन शब्दों का कोई अर्थ निकले,वे सार्थक शब्द कहलाते हैं।
जैसे- पानी, रोटी, चाय, खाना आदि।
२.निरर्थक शब्द-जिन शब्दों का कोई अर्थ ना निकले रे निरर्थक शब्द का लाते हैं ।
जैसे- वाय, वानी, वोटी, वाना आदि।
No.-2. बनावट के आधार पर–
१.रूढ़-वे शब्द जो एक से अधिक वर्णों के योग से बने हो और जिनका कोई अर्थ निकलता हो, रूढ़ शब्द कहलाते हैं ।
जैसे- पुस्तक, घर, किताब,कलम आदि।
२.योगिक-वे शब्द जो दो शब्दों के योग से बने हो तथा जिनका प्रत्येक खंड सार्थक हो, योगिक शब्द कहलाते हैं।
जैसे- विद्यालय, देवालय, पुस्तकालय, ग्रामवासी आदि।
३.योगरूढ़-वे शब्द जो योगिक होते हुए भी किसी विशेष अर्थ के लिए रूढ हो जाते हैं, वे योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं। जैसे- जलज, निशाचर, नीलकंठ आदि।
व्याकरण की परिभाषा:-
No.-3. उत्पत्ति के आधार पर–
१.तत्सम-संस्कृत भाषा के वे शब्द जो हिंदी में ज्यों के त्यों प्रयुक्त होते हैं, वे तत्सम शब्द कहलाते हैं।
जैसे- वस्त्र, पत्र, जल, सूर्य, प्रकाश, अग्नि, क्षेत्र, दिवस, हृदय आदि।
२.तद्भव-संस्कृत भाषा के वे शब्द जिनका बिगड़ा हुआ रूप हिंदी में प्रयुक्त होता है, वे तद्भव शब्द कहलाते हैं।
जैसे- लाख, क्षेत्र, गांव, नाक, आधा, पत्ता, माथा, बंदर, कान आदि।
३.देशज-देसी भाषाओं के वे शब्द जो हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, वे देशज शब्द कहलाते हैं।
जैसे खिड़की, चिड़िया, बेटी, तेंदुआ, ताला, खुरपी, पगड़ी, खाट धोती, झाड़ू, लोटा आदि।
४.विदेशी- विदेशी भाषाओं के वे शब्द जो हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, वे विदेशज शब्द कहलाते हैं।
जैसे- मास्टर, डॉक्टर, टेलर, बस, कार, स्कूटर टेलीविजन फ्रिज कूलर आदि।
५.संकर शब्द -वे शब्द जो दो अलग-अलग भाषाओं के योग से बनते हैं, वे संकर शब्द कहलाते हैं।
जैसे-लाठीचार्ज, टिकटघर, वर्षगांठ, सीलबंद, नुकसानदायक, फलदार आदि।
व्याकरण की परिभाषा:-
No.-4. प्रयोग के आधार पर–
१.विकारी-जिन शब्दों का रूप लिंग, वचन, काल, कारक आदि के कारण बदल जाता है, वे विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे- बच्चा, वह, उनका, मोटा, आता है, आती है आदि
२.अविकारी-जिन शब्दों का रूप लिंग, वचन, काल, कारक आदि के कारण नहीं बदलता है, वे अविकारी शब्द कहलाते हैं।
जैसे धीरे-धीरे, बाहर, जल्दी, के बाद, अथवा, वाह, और, किंतु, परंतु आदि।
No.-3. वाक्य विचार– इसके अंतर्गत वाक्य की परिभाषा, अंग, भेद , रचना आदि पर विचार किया जाता है।
“शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं।”
अर्थात वाक्य सार्थक शब्दों का ऐसा व्यवस्थित समूह होता है कि इससे पाठक को पूर्ण अर्थ समझ आ जाता है कि वक्ता क्या कहना चाहता है।
जैसे -राम फुटबॉल खेलता है।
गीता पाठ याद करती है।
रौनक गीत गाती है।
धीरज साइकिल चलाता है।
कृष्ण बांसुरी बजाता है।
राधिका पाठ याद करती है।
वाक्य के अंग-
वाक्य के दो अंग होते हैं-
No.-1. उद्देश्य– वाक्य में जिसके बारे में कुछ कहा जाए, उसे उद्देश्य कहते हैं।
जैसे- राम पुस्तक पढ़ता है ।
इस वाक्य में ‘राम’ उद्देश्य है।
रोशनी गीत गाती है।
इस वाक्य में ‘रोशनी’ उद्देश्य है।
ज्योति झूला झूलती है।
इस वाक्य में ‘ज्योति’ उद्देश्य है।
No.-2. विधेय-वाक्य में कर्ता के बारे में जो कुछ कहा जाए, उसे विधेय कहते हैं।
जैसे- राम पुस्तक पढ़ता है।
इस वाक्य में ‘पुस्तक पढ़ता है’ विधेय है।
रोशनी गीत गाती है।
इस वाक्य में ‘गीत गाती है’ विधेय है।
ज्योति झूला झूलती है।
इस वाक्य में ‘झूला झूलती है’ विधेय है।