आध्यात्मिक ज्ञान आधारित प्रश्नोत्तरी-आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको आध्यात्मिक ज्ञान आधारित प्रश्नोत्तरी के बारे में जानकारी देंगे। इससे पहले आर्टिकल में आप गीता के उपदेश के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं।
आध्यात्मिक ज्ञान आधारित प्रश्नोत्तरी-
प्रश्न 1. अविद्या किसे कहते हैं ?
उत्तर– विपरीत जानने को अविद्या कहते हैं।
प्रश्न 2. अविद्या का कोई उदाहरण दीजिए ?
उत्तर– जड़ को चेतन मानना,
ईश्वर को न मानना,
अंधेरे में रस्सी को सांप समझ लेना।
ये अविद्या के उदाहरण है।
प्रश्न 3. जन्म का अर्थ क्या है ?
उत्तर– शरीर को धारण करने का नाम जन्म है।
प्रश्न 4. जन्म किसका होता है ?
उत्तर– जन्म शरीर का होता है।
प्रश्न 5. मृत्यु किसे कहते है ?
उत्तर– आत्मा के शरीर से अलग होने को मृत्यु कहते हैं।
प्रश्न 6. जन्म क्यों होता हैं ?
उत्तर– पाप-पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए जन्म होता है।
प्रश्न 7. क्या जन्म-मृत्यु को रोका जा सकता है ?
उत्तर– हाँ, जन्म-मृत्यु को रोका जा सकता है।
प्रश्न 8. मुक्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर– जन्म-मृत्यु के बंधन से छूट जाना ही मुक्ति है।
प्रश्न 9. मुक्ति किसकी होती है ?
उत्तर– मुक्ति आत्मा की होती है।
अलौकिक ज्ञान –
प्रश्न 10. मुक्ति में आत्मा कहाँ रहता है ?
उत्तर– मुक्ति में आत्मा ईश्वर में रहता है।
प्रश्न 11. क्या मुक्ति में आत्मा ईश्वर में मिल जाता है ?
उत्तर– नहीं, मुक्ति में आत्मा ईश्वर में नहीं मिलती है।
प्रश्न 12. मुक्ति में सुख होता है अथवा दुःख ?
उत्तर– मुक्ति में किसी प्रकार का दुःख नहीं होता है। वहाँ केवल ईश्वर के आनन्द की अनुभूति होती है।
प्रश्न 13. मुक्ति कैसे प्राप्त होती हैं ?
उत्तर– सत्य, संयम, विद्या प्राप्ति और धर्माचरण करने से मुक्ति प्राप्त होती है।
प्रश्न 14. शरीर कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर– शरीर तीन प्रकार के होते हैं –
(1)स्थूल शरीर,
(2)सूक्ष्म शरीर,
(3)कारण शरीर।
प्रश्न 15. स्थूल शरीर किन तत्वों से बनता है ?
उत्तर– स्थूल शरीर पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बनता है।
प्रश्न 16. सूक्ष्म शरीर किसे कहते है ?
उत्तर– मन, बुद्धि, सूक्ष्म इन्द्रिय इत्यादि 18 पदार्थों को सूक्ष्म शरीर कहते हैं।
आध्यात्मिक ज्ञान आधारित प्रश्नोत्तरी-
प्रश्न 17. विद्या प्राप्ति के चार उपाय कौन से हैं ?
उत्तर– श्रवण, मनन, निदिध्यासन और साक्षात्कार विद्या प्राप्ति के 4 उपाय हैं।
प्रश्न 18. इन चार उपायों को समझाइए ?
उत्तर– श्रवण- ध्यान से सुनना,
मनन- सुने हुए पर एकांत में विचार करना,
निदिध्यासन– विवेचन करना,
साक्षात्कार- सही ज्ञान को प्राप्त कर लेना.
प्रश्न 19. जन्म एक है अथवा अनेक ?
उत्तर– जन्म अनेक होते हैं।
प्रश्न 20. पूर्वजन्मों की बातें याद क्यों नहीं रहती हैं ?
उत्तर– आत्मा का ज्ञान और सामर्थ्य कम होने से पूर्वजन्मों की बातें याद नहीं रहती हैं।
प्रश्न 21. आत्मा एक है अथवा अनेक ?
उत्तर– आत्मा अनेक हैं।
प्रश्न 22. मनुष्य, पशु-पक्षी आदि शरीरों में क्या आत्मा एक समान होता है ?
उत्तर– हाँ, सभी शरीरों में आत्मा एक समान होती है।
प्रश्न 23. आत्मा को भिन्न-भिन्न शरीर क्यों प्राप्त होते हैं ?
उत्तर– अपने पाप-पुण्य रुपी कर्मों के कारण आत्मा को भिन्न-भिन्न शरीर प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 24. पशु-पक्षी का शरीर कब मिलता है ?
उत्तर– पशु-पक्षी का शरीर पाप कर्म करने पर मिलता है।
प्रश्न 25. मुक्ति कितने जन्मों में होती है ?
उत्तर– मुक्ति अनेक जन्मों में होती है।
प्रश्न 26. स्वर्ग किसे कहते हैं ?
उत्तर– सांसारिक सुख-सुविधओं के भोगने को स्वर्ग कहते हैं।
प्रश्न 27. कर्म कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर– कर्म 4 प्रकार के होते हैं-
(1)पुण्य
(2)पाप
(3)मिश्रित
(4)निष्काम
आध्यात्मिक ज्ञान आधारित प्रश्नोत्तरी-
प्रश्न 28. मिश्रित कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर– जिस कर्म में पुण्य-पाप मिला-जुला रहता है उसे मिश्रित कर्म कहते हैं।
प्रश्न 29. सकाम कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर– धन, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा को पाने की इच्छा से जो कर्म किए जाते हैं उन्हें सकाम कर्म कहते हैं।
प्रश्न 30. निष्काम कर्म क्या होते हैं ?
उत्तर– दूसरों के हित, परोपकार की भावना से जो कर्म किए जाते हैं उन्हें निष्काम कर्म कहते हैं।
प्रश्न 31. पुण्य कर्मों से उदाहरण दीजिए?
उत्तर– पढ़ना-पढ़ाना, इन्द्रियों पर संयम, माता-पिता की सेवा, धर्म का आचरण, परोपकार ये अच्छे कर्म हैं।
प्रश्न 32. सभी पापों का मूल क्या है ?
उत्तर– सभी पापों का मूल लोभ है।
प्रश्न 33. ब्रह्मा किसे कहते हैं ?
उत्तर– चारों वेदों के विद्वान् को ब्रह्मा कहते हैं।
प्रश्न 34. जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर– जीवन का मुख्य उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है।
Note-
“न जायते म्रियते वा कदाचित अयम्, भूत्वा भविता वा ना भुवा,
अजो नित्य, शाश्वतो अयं पुराणों न हन्यते हन्यमाने शरीरे।”
शरीर के मारे जाने पर भी यह आत्मा नहीं मरती, आत्मा का न तो जन्म होता है और ना ही मृत्यु होती है। शरीर का जन्म होता है और शरीर की ही मृत्यु होती है
इसलिए आत्मा का न तो जन्म होता है न मरण होता है। आत्मा तो अनादि और अमर है।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
अर्थात
जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है।