समास की परिभाषा व भेद:-आज SSCGK आपसे समास की परिभाषा व भेद के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे ।
इससे पहली पोस्ट में आप विपरीतार्थक शब्द की परिभाषा व उदाहरण के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं ।
समास की परिभाषा व भेद:
समास की परिभाषा:-परस्पर संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों के मेल को समास कहते हैं।
जैसे-
यथाविधि -विधि के अनुसार,
राजपुत्र- राजा का पुत्र
ऋणमुक्त -ऋण से मुक्त
अहित -न हित
मनसिज -मन में उत्पन्न
समास के 6 भेद होते हैं-
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
- द्वंद्व समास
- बहुव्रीहि समास
1.अव्ययीभाव समास:-जिस समास में पहला पद प्रधान हो और समस्त पद अव्य का काम करें, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं ।
जैसे:-
यथाविधि -विधि के अनुसार
प्रतिदिन -दिन दिन
भरसक -पूरी शक्ति से
भरपेट -पेट भर कर
रातों-रात -रात ही रात में
प्रत्येक -एक एक
यथासंभव -जैसा संभव हो
यथाशक्ति -शक्ति के अनुसार
आमरण -मृत्यु पर्यंत
आजानु -जानुओं(घुटनों) तक
हर रोज -रोज-रोज
हाथों हाथ -हाथ ही हाथ
अनजाने -जाने बिना
मनमन -मन ही मन
आजीवन -जीवन पर्यंत
हिंदी भाषा में समास की परिभाषा व भेद:-
- तत्पुरुष समास:- जिस समास का दूसरा पद प्रधान हो और दोनों पदों के बीच, प्रथम (कर्ता) तथा अंतिम (संबोधन) कारक के अतिरिक्त किसी भी कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं ।
जैसे:-
ऋणमुक्त -ऋण से मुक्त
वनवास -वन में वास
राजपुरुष -राजा का पुरुष
जन्मरोगी -जन्म से रोगी
शोकाकुल -शोक से आकुल
तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं जिनका विवरण निम्नलिखित है:-
(1) कर्म तत्पुरुष:-जिस तत्पुरुष समास में कर्म कारक विभक्ति का लोप पाया जाता है, उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
ग्रामगत -ग्राम को गत
यशप्राप्त -यश को प्राप्त
जलपिपासु -जल को पीने की इच्छा वाला
देशगत -देश को गत
परलोक गमन -परलोक को गमन
स्वर्गप्राप्त -स्वर्ग को प्राप्त
ग्रंथकार -ग्रंथ को रचने वाला
(2) करण तत्पुरुष:-जिस तत्पुरुष समास में करण कारक की विभक्ति का लोक पाया जाता है इसे करण तत्पुरुष समास कहते हैं ।
जैसे :-
मनगढ़ंत -मन से गढ़ी हुई
हस्तलिखित -हस्त से लिखित
रेखांकित -रेखा से अंकित
शोकाकुल -शोक से आकुल
प्रेमातुर -प्रेम से आतुर
दईमारा -दई से मारा हुआ
बिहारीरचित -बिहारी द्वारा रचित
तुलसीकृत -तुलसी से कृत
मनमाना -मन से माना हुआ
कष्टसाध्य -कष्ट से साध्य
जन्मरोगी -जन्म से रोगी
कपड़छन -कपड़े से छना हुआ
गुणयुक्त -गुणों से युक्त
ईश्वर प्रदत्त -ईश्वर से प्रदत
बाणबिद्ध -बाण से बिद्ध
समास की परिभाषा व भेद:
(3) संप्रदान तत्पुरुष:-जिस तत्पुरुष समास में संप्रदान कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है, उसे संप्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:-
देशभक्ति -देश के लिए भक्ति
आरामकुर्सी -आराम के लिए कुर्सी
गुरुदक्षिणा -गुरु के लिए दक्षिणा
रसोईघर -रसोई के लिए घर
पाठशाला -पाठ के लिए शाला
मालगाड़ी -माल के लिए गाड़ी
जेबखर्च -जेब के लिए खर्च
यज्ञशाला -यज्ञ के लिए शाला
राहखर्च -राह के लिए खर्च
क्रीडाक्षेत्र -क्रीडा के लिए क्षेत्र
युद्धभूमि -युद्ध के लिए भूमि
डाकगाड़ी -डाक के लिए गाड़ी
हथकड़ी -हाथों के लिए कड़ी
राज्य लिप्सा -राज्य के लिए लिप्सा
(4) अपादान तत्पुरुष:-जिस तत्पुरुष समास में अपादान कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता हैं, उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं ।
जैसे:-
ऋण मुक्त -ऋण से मुक्त
विद्याहीन -विद्या से हीन
आकाशवाणी -आकाश से आगत वाणी
कामचोर -काम से जी चुराने वाला
धर्म भ्रष्ट -धर्म से भ्रष्ट
पथभ्रष्ट -पद से भ्रष्ट
देशनिर्वासित -देश से निर्वासित
बंधनमुक्त -बंधन से मुक्त
आकाशपतित -आकाश से पतित
भयभीत -भय से भीत
जन्मांध -जन्म से अंधा
गुरु भाई -गुरु के संबंध से भाई
समास की परिभाषा व भेद:
(5) संबंध तत्पुरुष:-जिस तत्पुरुष समास में संबंध कारक विभक्ति का लोप पाया जाता है, उसे संबंध तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:-
दीनानाथ -दीनों के नाथ
बैलगाड़ी -बैलों की गाड़ी
वनमानुष -वन का मानुष
चायबागान -चाय के बगीचे
देवालय -देवों का आलय
लक्ष्मीपति -लक्ष्मी का पति
रामानुज -राम का अनुज
पवनपुत्र –पवन का पुत्र
राजपुत्र -राजा का पुत्र
अमचूर -आम का चूर
(6)अधिकरण तत्पुरुष:- जिस तत्पुरुष समास में अधिकरण कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:-
दानवीर -दान में वीर
आपबीती -अपने पर बीती
शरणागत -शरण में आगत
घर वास -घर में वास
आनंदमग्न -आनंद में मग्न
कवि श्रेष्ठ
-कवियों में श्रेष्ठ
वनवास –वन में वास
देशाटन -देश में अटन
गृह प्रवेश -गृह में प्रवेश
कानाफूसी -कानों में फुसफुसाहट
घुड़सवार -घोड़े पर सवार
समास की परिभाषा व भेद:-
इनके अतिरिक्त तत्पुरुष के तीन भेद और भी माने जाते हैं:-
(1) नञ् तत्पुरुष:-निषेध या अभाव के अर्थ में किसी शब्द से पहले ‘अ’ या ‘अन्’ लगाने से जो समास बनता है उसे नञ् तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:-
अनाचार =न आचार
अधर्म =न धर्म
अनुदार= न उदार
असंभव =न संभव
अनहोनी=अन् + होनी
अन्याय= अ + न्याय
(2) अलुक तत्पुरुष :-जिस तत्पुरुष समास में पहले पद की विभक्ति का नहीं होता है, उसे अलुक तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:-
युधिष्ठिर -युद्ध में स्थिर
वाचस्पति -वाणी का पति
खेचर -आकाश में विचरने वाला
मनसिज -मन में उत्पन्न
धनंजय -धन को जय करने वाला
(3) उपपद तत्पुरुष:-जिस तत्पुरुष समास का स्वतंत्र रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता, ऐसे सामासिक शब्दों को ‘उपपद तत्पुरुष समास’ कहते हैं।
जैसे:-
तटस्थ=तट+स्थ
जलज=जल+ज
पंकज=पंक+ज
सौदागर=सौदा+गर
पनडुब्बी=पन+डुब्बी
कलमतराश=कलम +तराश
घुड़चढ़ी=घुड़+चढ़ी
समास की परिभाषा व भेद:-
- कर्मधारय समास:-जिस समास के दोनों पदों के बीच विशेष्य- विशेषण या उपमेय -उपमान का संबंध हो और दोनों पदों में एक ही कारक की विभक्ति पाई जाए, उसे कर्मधारय समास कहते हैं ।
जैसे:-
वनमानुष -वन में निवास करने वाला मानुष
दही बड़ा =दही में डूबा हुआ बड़ा
पनचक्की =पानी से चलने वाली चक्की
पर्णशाला =पर्ण से निर्मित शाला
वनमानुष =वन में निवास करने वाला मानुष
पुरुषरत्न =पुरुषों में है जो रत्न
नीलगाय =नीली है जो गाय
गुरुदेव =गुरु रूपी देव
चंद्रमुख =चंद्र के समान है जो मुख
माल गाड़ी =माल ले जाने वाली गाड़ी
दीन दयालु =दीनों पर है जो दयालु
बैलगाड़ी -बैलों से खींची जाने वाली गाड़ी
मृगनयन-मृग के नयन के समान नयन कमलनयन -कमल के समान नयन
कनकलता -कनक की सी लता
देह लता = देह रूपी लता
काली मिर्च = काली है जो मिर्च
महाराजा =महान है जो राजा
महाजन =महान है जो जन
पुरुष सिंह =सिंह के समान है जो पुरुष
चंद्रमुखी -चंद्र के समान है जो मुख
पुरुषसिंह -सिंह के समान है जो पुरुष
नीलकंठ -नीला है जो कंठ
नीलांबर -नीला है जो अंबर
काला पानी -काला है जो पानी
घनश्याम -घन के समान श्याम
नीलगाय -नीली है जो गाय
कर कमल -कमल के समान कर
पीतांबर -पीत है जो अंबर
भवसागर -भव रूपी सागर
समास की परिभाषा व भेद:-
- द्विगु समास:-जिस समास का पहला पद संख्यावाचक हो और समस्त पद समूह या समाहार का बोध कराए, उसे द्विगु समास कहते हैं।
जैसे:-
नवरत्न -नौ रत्नों का समूह
अष्टाध्यायी -अष्ट अध्यायों का समूह
दोपहर -दो पहरों का समूह
चौमासा -चार मासों का समाहार
सप्तर्षि -सात ऋषियों का समूह
शताब्दी -शत अब्दों का समूह
त्रिवेणी -तीन वेणियों का समाहार
पंचवटी -पांच वट का समाहार
पंसेरी -पांच सेरों का समाहार
त्रिभुवन -तीन भुवनों का समूह
समास की परिभाषा व भेद:-
- द्वंद्व समास:-जिस समास के दोनों पद प्रधान हैं तथा विग्रह करने पर दोनों पदों के बीच ‘और’ ‘तथा’, ‘अथवा’ या ‘योजक शब्द’ लगे, उसे द्वंद्व समास कहते हैं।
जैसे:-
दाल-रोटी -दाल और रोटी
दूध-दही -दूध और दही
गुण-दोष -गुण तथा दोष
पाप-पुण्य -पाप और पुण्य
भाई-बहन -भाई और बहन
राजा-रंक -राजा और रंक
अमीर-गरीब -अमीर और गरीब
घी-शक्कर -घी और शक्कर
सुख-दुख -सुख और दुख
माता-पिता -माता और पिता
लव-कुश -लव और कुश
देश-विदेश -देश और विदेश
नर-नारी -नर और नारी
राम-लक्ष्मण -राम और लक्ष्मण
समास की परिभाषा व भेद:-
- बहुव्रीहि समास:-जिस समाज का कोई भी पद प्रधान नहीं होता और जनपद मिलकर किसी अन्य शब्द के विशेषण होते हैं अर्थात कोई अन्य पद प्रधान होता है, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
जैसे:-
जितेंद्रिय -जीत ली है इंद्रियां जिसने मेघनाथ
घनश्याम -घन के समान श्याम है जो अर्थात कृष्ण
त्रिनेत्र -तीन नेत्र हैं जिसके अर्थात शिव
मृत्युंजय -मृत्यु को भी जीत लिया है जिसने अर्थात शंकर
गिरिधर -गिरी को धारण करने वाला अर्थात कृष्ण
चक्रधर– चक्र को धारण करने वाला अर्थात विष्णु
लंबोदर -लंबा है उदर जिसका अर्थात गणेश
चतुर्भुज -चार हैं भुजाएं जिसकी अर्थात विष्णु
कनफटा- कान हो फटा जिसका अर्थात कोई व्यक्ति
मक्खीचूस -मक्खी को भी चूस लेने वाला अर्थात कंजूस
दिगंबर -दिशाएं ही है वस्त्र जिसके अर्थात नग्न
विषधर -विष को धारण करने वाला अर्थात सर्प
पीतांबर -पीत अंबर हैं जिसके अर्थात कृष्ण
चंद्रशेखर -चंद्र है शेखर पर जिसके अर्थात शिव
नीलकंठ -नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव
अजातशत्रु -नहीं पैदा हुआ हो शत्रु जिसका कोई व्यक्ति
गजानन -गज के समान आनन है जिसका अर्थात गणेश
आजानुबाहु-अजानु लंबी है भुजाएं जिसकी ऐसा कोई व्यक्ति विशेष।