देवयज्ञ विधि - SSC GK

देवयज्ञ विधि

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देवयज्ञ विधि
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देवयज्ञ विधि:-इस आर्टिकल में आज SSCGK आपसे देवयज्ञ विधि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। इससे पहले आर्टिकल में आप संख्यावाचक शब्द के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं।

देवयज्ञ विधि:- 

यज्ञ का अर्थ – शुभ कर्म। श्रेष्ठ कर्म। ‘यज्ञ’ का अर्थ केवल आग में घी डालकर मंत्र पढ़ना नहीं होता। यज्ञ का अर्थ है- सतकर्म। वेदसम्मत कर्म। ईश्वर-प्रकृति तत्वों से सकारात्मक भाव से किए गए आह्‍वान से जीवन की प्रत्येक इच्छा पूरी होती है। यज्ञ का रहस्य यही है ।  यज्ञ शब्द अग्निहोत्र, हवन वा देवयज्ञ के लिए प्रचलित  हो गया है।आइये  पहले अग्निहोत्र वा देवयज्ञ पर विचार करते हैं। अग्निहोत्र में प्रयोग होने  वाला अग्नि शब्द सर्वज्ञात है। अग्निहोत्र वह प्रक्रिया है, जिसमें अग्नि में चार प्रकार के द्रव्यों की आहुतियां दी जाती हैं। ये चार प्रकार के द्रव्य हैं- गोधृत व केसर, कस्तूरी आदि सुगन्धित पदार्थ, मिष्ट पदार्थ शक्कर आदि, शुष्क अन्न, फल व मेवे आदि तथा ओषधियां व वनस्पतियां जो स्वास्थ्यवर्धक होती हैं। अग्निहोत्र का मुख्य उद्देश्य इन सभी पदार्थों को अग्नि की सहायता से सूक्ष्मातिसूक्ष्म बनाकर उसे वायुमण्डल व सुदूर आकाश में फैलाया जाता है।

देवयज्ञ विधि-

यह बात हम सभी जानते हैं कि जब कोई वस्तु जलती है, तो वह सूक्ष्म परमाणुओं में परिवर्तित हो जाती है। परमाणु स्वाभाव से हल्के होते हैं और वे वायु मण्डल में सर्वत्र वा दूर-दूर तक फैल जाते हैं। वायु मण्डल में फैलने से उनका वायु पर लाभप्रद प्रभाव होता है। हम जानते हैं कि दुर्गन्धयुक्त वायु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है| गाय के घी व केसर, कस्तूरी आदि नाना प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों के जलने से वायु की दुर्गन्ध दूर हो जाती है और वह सुगन्धित, स्वास्थ्यप्रद व रोगनाशक हो जाती है। परिणाम स्वरूप यज्ञ से पूर्व की वायु के गुणों में वृद्धि होकर वह स्वास्थ्यवर्धक, रोगनिवारक, वर्षाजल को शुद्ध करने वाली, प्रदुषण निवारक, वर्षा जल पर आश्रित अन्न व वनस्पतियों को स्वास्थ्यप्रद करने, यहां तक की अच्छी सन्तानों को जन्म देने में भी सहायक होती है।

         अग्नि होत्र

         आचमन मंत्र

अग्निहोत्र आरम्भ करने से पूर्व निम्न मंत्रों के अर्थ विचारपूर्वक तीन आचमन करें-

ओम् अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।।१।।

(एक आचमन करें)

ओम् अमृतापिधानमसि  स्वाहा।।२।।

(इससे दूसरा)

ओं सत्यं यश: श्रीर्मयि श्री: श्रयतां स्वाहा:।।३।।

इससे तीसरा आचमन करें,

भावार्थ हे अविनाशी सर्वरक्षक परमात्मा ! आप हमें अपने भीतर से प्राप्त होनेवाले दु:खों से बचाने वाले हो। आप ही हमें बाहर से प्राप्त होने वाले दु:खों से बचाने वाले हो।

हे सर्वरक्षक परमात्मा ! आप हमें सत्य-ज्ञान, यश-कान्ति, धन-सम्पदा आदि समस्त श्रेष्ठ पदार्थ प्राप्त करायें, जिससे हम आपसे रक्षित होकर इस जीवन में सुख-शांति से रहे।

Method of Devyagya:-

              ।।ओम्।।

             अंगस्पर्श-मंत्र

निम्न मन्त्रो के अर्थविचारपूर्वक अपने दोषों को दूर करने की प्रभु से प्रार्थना करते हुए

बांयें हाथों में थोड़ा जल लेकर दाहिने हाथ की मध्यमा और अनामिका अंगुलियों से प्रथम दायीं ओर,

पश्चात् बायीं ओर स्पर्श करके मार्जन करें-

ओं वाॾ्; म आस्येऽस्तु।।

(इस मंत्र से मुख)

ओं नसोर्मे प्राणोऽस्तु।।

(इस मंत्रों से दोनों नासिका छिद्र)

ओम् अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु।।

(इस मंत्र से दोनों आंखें)

ओं कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु।।

(इस मंत्र से दोनों कान)

ओं बाहोर्मे बलमस्तु।।(इस मंत्र से दोनों भुजाएं)

ओम् ऊर्वोर्म ओजोऽस्तु।।

(इस मंत्र से दोनों जंघाएं)

ओम् अरिष्टानि मेऽडाग्नि तनुस्तन्वा मे सह सन्तु।।

(इससे शरीर के सम्पूर्ण अंगो को।)

भावार्थ:-हे सर्वरक्षक परमात्मा! आपकी कृपा से मेरे मुख में वाक्-शक्ति, नासिकाओं में प्राणशक्ति,

आंखों में दर्शनशक्ति, कानों में श्रवणशक्ति, भुजाओं में बल और जंघाओं में वेग-पराक्रम शक्ति सदा

विद्यमान रहे। मेरे सभी अंग-प्रत्यंग न्यूनता वा दोषों से रहित होते हुए शरीर के साथ सदा वर्तमान रहें

अर्थात जब तक शरीर रहे, तब तक  मेरे सभी अंग-प्रत्यंग स्थिर, बलवान् रहे, शक्तिहीन न हो।

सारांश –

केवल कमाना, खाना और सोना ही जीवन नहीं है।

कुछ समय अपने देश, धर्म, समाज और संस्कृति के लिए भी निकालें।

जागो सनातन धर्म वालों जागो ,आओ लौट चलें वेदों की ओर।

Jagminder Singh

My name is Jagminder Singh and I like to share knowledge and help.