सुभाषितानि - SSC GK

सुभाषितानि

|
Facebook
सुभाषितानि
---Advertisement---

सुभाषितानि :- इस आर्टिकल में आज SSCGK आपसे सुभाषितानि नामक विषय के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे इससे पहले आर्टिकल में आप संस्कृत में फलों के नाम विस्तार से पढ़ चुके हैं।।

सुभाषितानि-

परिचय- ‘सुभाषित’ शब्द दो शब्दों ‘सु + भाषित’ के योग से बना है। ‘सु’ का अर्थ होता है मधुर, सुन्दर एवं भाषित’ का अर्थ ‘वचन’ होता है। इस प्रकार सुभाषित का अर्थ होता है-सुन्दर या मधुर वचन। प्रस्तुत पाठ में सूक्तिमञ्जरी, नीतिशतकम्, मनुस्मृतिः, शिशुपालवधम्, पञ्चतन्त्रम् से रोचक और विचारप्रधान श्लोकों को संकलित किया गया है।

Subhashitani:-

गुणा: गुणज्ञेषु गुणा: भवन्ति

ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।

सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः

समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः॥………1.

अन्वयः -गुणाः गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति। ते निर्गुणं प्राप्य दोषाः भवन्ति। नद्यः सुस्वादुतोयाः भवन्ति। (ताः एव) समुद्रम् आसाद्य अपेयाः भवन्ति।

सरलार्थः  -गुणवान व्यक्तियों में गुण, गुण ही बने रहते हैं। वे (गुण) निर्गुण (दुर्जन) व्यक्ति के पास जाकर दोष बन जाते हैं। नदियाँ स्वादिष्ट जल वाली होती हैं। वे (नदियाँ) ही समुद्र में मिलकर अपेय (न पीने योग्य) बन जाती हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ-

गुणाः = अच्छे लक्षण

गुणज्ञेषु =गुणी जनों में

प्राप्य =पाकर

दोषाः =दोष, कुलक्षण

सुस्वादुतोयाः = स्वादिष्ट जल

प्रभवन्ति = निकलती हैं,उत्पन्न होती हैं

नद्यः = नदियाँ

आसाद्य = मिलकर,पहुँचकर

अपेयाः = न पीने योग्य

साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः

साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः।

तृणं न खादन्नपि जीवमानः

तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥……….2.

अन्वयः  -साहित्य-सङ्गीत-कला-विहीनः (जन:) पुच्छविषाणहीनः साक्षात् पशुः (भवति)। सः तृणं न खादन् अपि जीवमानः, तत् पशूनां परमं भागधेयम्।

सरलार्थ:  –साहित्य, संगीत और कला से रहित व्यक्ति सींग तथा पूँछ से रहित साक्षात् पशु है। वह घास न खाते हुए भी जीवित है। यह तो पशुओं के लिए परम सौभाग्य की बात है।

कठिन शब्दों के अर्थ:-

पशुः = पशु, जानवर, मूर्ख

तृणम् = घास

खावन्नपि  = खाते हुए भी

जीवमानः = जीवित रहता हुआ

भागधेयम् = सौभाग्यम्।

सुभाषितानि:-

लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री

नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः।

विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यं

राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य ॥………3.

अन्वयः  -लुब्धस्य यशः, पिशुनस्य मैत्री, नष्टक्रियस्य कुलम्, अर्थपरस्य धर्म:, व्यसिनः विद्याफलम्, कृपणस्य सौख्यम्, प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य (च) राज्यं नश्यति।

सरलार्थः  -लोभी का यश, चुगलखोर की मित्रता, निकम्मे का कुल, स्वार्थी का धर्म, व्यसनी की विद्या का फल,  कंजूस का सुख और उन्मत्त मन्त्री वाले राजा का राज्य नष्ट हो जाता है।

कठिन शब्दों के अर्थ-

लुब्धस्य = लोभी का

यशः = कीर्ति

पिशुनस्य = चुगलखोर की

नष्टक्रियस्य = निकम्मे का

व्यसिनः = बुरी आदत (लत) वालों की

कृपणस्य = कंजूस की

प्रमत्तः = उन्मत्त

नराधिपस्य = राजा का

पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं,

माधुर्यमेव जनयेन्मधुमक्षिकासौ

सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनानां

श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति ॥………4.

अन्वयः  -असौ मधुमक्षिका तु कटुकं रसं पीत्वा मधुरं समानं माधुर्यम् एव जनयेत् तथा एव सन्तः समसज्जन-दुर्जनानां वचः श्रुत्वा मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।

सरलार्थ-   वह मधुमक्खी तो कड़वे रस को पीकर भी मधुर के समान मधुरता (शहद) ही उत्पन्न करती है। उसी प्रकार सज्जन लोग दुष्टों के कटु वचन सुनकर भी सज्जनों के समान मधुर  वचनों वाली वाणी बोलते हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ:-

कटुकम् = कड़वा

जनयेत् = पैदा करती है

असौ = वह

सन्तः = सज्जन

तथैव = वैसे ही

श्रुत्वा = सुनकर

सृजन्ति = निर्माण करते हैं

सुभाषितानि:-

महतां प्रकृतिः सैव वर्धितानां परैरपि।

न जहाति निजं भावं संख्यासु लाकृतिर्यथा ॥……5.

अन्वयः  -परैः वर्धितानाम् अपि महतां प्रकृतिः सा (तादृशी) एव (तिष्ठति)। यथा संख्यासु लाकृतिः निजं भावं न जहाति।

सरलार्थ:

दूसरे के द्वारा प्रशंसित होने या बढ़ाए जाने पर भी महापुरुषों का स्वभाव उसी तरह नहीं बदलता है, जिस प्रकार संख्याओं में नौ का अंक अपना स्वभाव (आकार) नहीं छोड़ता है।

कठिन शब्दों के अर्थ-

प्रकृतिः = आदत, स्वभाव

वधितानाम् = बढ़ाए जाने पर, प्रशंसितों का

परैः = दूसरों से

जहाति = छोड़ देता है

लाकृतिः = नौ की संख्या ।

स्रियाम् रोचमानायां सर्वं तद् रोचते कुलम्।

तस्यां त्वरोचमानायां सर्वमेव न रोचते ॥…….6.

अन्वयः  – स्रियाम् मानायां तत् सर्वं कुलं रोचते। तस्यां (म्रियां) तु अरोचमानायां सर्वम् एव न रोचते।

सरलार्थ: –लक्ष्मी के अच्छा लगने अर्थात संपन्नता प्राप्त होने पर सारा कुल अच्छा लगता है तथा लक्ष्मी के अच्छा न लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता है।

कठिन शब्दों के अर्थ-

स्रियाम् = लक्ष्मी में

रोचमानायाम् = अच्छी लगने पर

रोचते   = अच्छा लगता है।

Jagminder Singh

My name is Jagminder Singh and I like to share knowledge and help.