व्यंजन की परिभाषा और भेद:-इस आर्टिकल में आज SSCGK आपसे व्यंजन की परिभाषाऔर भेद के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे |इससे पहले आर्टिकल में हम आपको स्वर की परिभाषा व भेदों के बारे में पिछली पोस्ट में बता चुके हैं |
व्यंजन की परिभाषा और भेद:-
हिंदी व्याकरण में व्यंजन की परिभाषा,
“जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है अर्थात जो वर्ण स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं ,वे व्यंजन कहलाते हैं।”
अर्थात जिन वर्णों को बोलने में स्वरों की मदद लेनी पड़ती है ,उन्हें व्यंजन कहते हैं |
व्यंजनों का उच्चारण करते समय मुख से श्वास वायु, मुख के अलग-अलग स्थानों को स्पर्श करती हुई निकलती है अर्थात बाहर आती है ।
हिंदी भाषा में कुल 33 व्यंजन होते हैं ।हिंदी में व्यंजनों की कुल संख्या 33 ही होती है। लेकिन 2 द्विगुण व्यंजन(ड़, ढ़) और 4 संयुक्त व्यंजन(क्ष,त्र,ज्ञ,श्र) मिलाने के बाद व्यंजनों की संख्या 39 हो जाती है।
जैसे -क, च, ट, त, प, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह आदि।
व्यंजन की परिभाषा और भेद:-
1.व्यंजन के भेद–
१.स्पर्श व्यंजन
२.अंत:स्थ व्यंजन
३.ऊष्म व्यंजन
व्यंजन के भेद/प्रकार –
१. स्पर्श व्यंजन – जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय अर्थात बोलते समय, श्वास वायु मुख के अलग-अलग भागों को स्पर्श करती हुई बाहर आती है, तो उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं ।हिंदी वर्णमाला में कुल 25 स्पर्श व्यंजन है।
क से म तक 25 व्यंजन व्यंजन कहलाते हैं|
>कवर्ग – क ख ग घ ङ (कंठ)
>चवर्ग– च छ ज झ ञ (तालु)
>टवर्ग- ट ठ ड ढ ण (मूर्धा)
>तवर्ग– त थ द ध न (दांत)
>पवर्ग– प फ ब भ म (ओष्ठ)
२. अंत:स्थ व्यंजन – जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय अर्थात बोलते समय श्वास वायु, मुख व जीभ(जिह्वा) को बिना स्पर्श किये बाहर निकलती है ,तो उन्हें अंतस्थ व्यंजन कहते हैं।
जैसे –य,र,ल,व आदि।
३. ऊष्म व्यंजन – जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय अर्थात बोलते समय श्वास वायु, मुख के विभिन्न भागों से रगड़ खाती हुई ऊष्मा के साथ बाहर निकलती है, तो उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं।
जैसे –श,ष,स,ह आदि।
संयुक्त व्यंजन– दो या दो अधिक व्यंजन वर्णों के मेल से बनने हुए व्यंजन संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं |
जैसे – क्ष,त्र,ज्ञ,श्र|
हिंदी वर्णमाला में चार संयुक्त व्यंजन (क्ष,त्र,ज्ञ,श्र) होते हैं।
क् + ष् +अ =क्ष
त् + र् + अ =त्र
ज् + ञ् +अ =ज्ञ
श् + र् +अ =श्र
संयुक्त व्यंजन युक्त शब्द – क्षत्रिय, क्षात्र, ज्ञानी, ज्ञान, श्रीमान ,श्रीमती , त्रिशूल ,त्रिनेत्र ,त्रास , छात्र ,छात्रा, पात्र ,प्रज्ञा ,प्रक्षालन,दीक्षा ,भिक्षाटन आदि |
व्यंजन की परिभाषा और भेद:-
नं. 2. उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण-
व्यंजनों को ऊच्चारण स्थान के आधार पर वर्गीकृत किया गया है, ताकि उन्हें आसानी से समझा जा सके। हम जानते हैं कि जब भी हम व्यंजनों को उच्चारण करते हैं, तो श्वास वायु मुख अलग-अलग भागों को स्पर्श करती हुई बाहर निकलती है। मुख के जिस भाग से श्वास वायु टकराती हुई बाहर आती है ,उसी भाग के नाम पर उन व्यंजनों का नाम रखा गया है।
उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों को वर्गीकरण निम्नलिखित है–
१. कंठ्य वर्ण:– जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास वायु, गले को स्पर्श करती हुई बाहर निकलती है, वे वर्ण कंठ्य वर्ण कहलाते हैं।
जैसे -अ,आ ,कवर्ग ,ह आदि ।
२. तालव्य वर्ण: -जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास वायु, तालु को स्पर्श करती हुई मुख से बाहर निकलती है उन्हें तालव्य वर्ण कहते हैं।
जैसे – इ, ई, चवर्ग, य, श आदि ।
३. मूर्धन्य वर्ण:– जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास वायु, मूर्धा को स्पर्श करती हुई मुख से बाहर आती है तो उन्हें मुर्धन्य वर्ण कहते हैं।
जैसे – ऋ, टवर्ग, र, ष आदि|
व्यंजन की परिभाषा और भेद:-
४.दंत्य वर्ण:– जिन वर्णों का उच्चारण करते समय ,श्वास वायु दांतो से स्पर्श करती हुई मुख से बाहर आती है, तो उन्हें दंत्य वर्ण कहते हैं।
जैसे -तवर्ग ,ल, स, ज़ आदि।
५. ओष्ठ्य वर्ण:– जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास वायु, होठों को स्पर्श करती हुई मुख से बाहर आती है तो उन्हें ओष्ठ्य वर्ण कहते हैं। जैसे -उ, ऊ, पवर्ग आदि।
६. नासिक्य वर्ण– जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास वायु, नासिका से बाहर आती है, तो उन्हें नासिक्य वर्ण कहते हैं।
जैसे -अं, ङ, ञ, ण, न, म आदि।
७.कंठतालव्य वर्ण:– जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास वायु, कंठ और तालु को स्पर्श करती हुई मुख बाहर आती है, तो उन्हें कंठतालव्य वर्ण कहते हैं ।जैसे – ए, ऐ आदि।
८. कंठौष्ठ्य वर्ण:-जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास वायु ,कंठ और तालु से स्पर्श करती हुई मुख से बाहर आती है, तो उन्हें कंठौष्ठ्य वर्ण कहते हैं। जैसे -ओ, औ, ऑ आदि।
९. दंतोष्ठ्य वर्ण:– जिन वर्णों का उच्चारण करते समय श्वास वायु, दातों और होठों को स्पर्श करती हुई बाहर निकलती है, तो
उन्हें दंतौष्ठ्य वर्ण कहते हैं।जैसे – व, फ़ आदि।
व्यंजन की परिभाषा और भेद:-
नं.3.प्राणत्व/श्वास वायु की मात्रा के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण:-
हिंदी में प्राणत्व का अर्थ होता है- श्वास वायु अर्थात सांस की हवा।
व्यंजनों का उच्चारण करते समय मुंह से निकलने वाली श्वास वायु की मात्रा के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के होते हैं –
व्यंजन की परिभाषा और भेद:-
1.अल्पप्राण
2.महाप्राण
नं. 1.अल्पप्राण:-जिन व्यंजनों को बोलने में कम समय लगता है तथा मुंह से कम हवा बाहर आती है, तो वे अल्पप्राण व्यंजन कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग का पहला तीसरा और पांचवा अक्षर अल्पप्राण व्यंजन होता है।इनकी संख्या 20 है।
जैसे:-
क ग ङ
च ज ञ
ट ड ण ड़
त द न
प ब म
य र ल व
नं. 2.महाप्राण:-जिन व्यंजनों को बोलने में अधिक समय लगता है और मुंह से अधिक हवा बाहर आती है, तो वे महाप्राण व्यंजन कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा अक्षर महाप्राण व्यंजन होता है। इनकी संख्या 15 है।जैसे:-
ख घ
छ झ
ठ ढ ढ़
थ ध
फ भ
श ष स
व्यंजन की परिभाषा और भेद:-
नं.4. कंपन/घोषत्व के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण:-
हिंदी में घोष का अर्थ होता है-कंपन।
घोषत्व/कंपन के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण दो प्रकार से किया जाता है-
- अघोष व्यंजन
- सघोष व्यंजन
- अघोष व्यंजन:-जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय यदि स्वरयंत्री में कंपन न हो, तो वे अघोष व्यंजन कहलाते हैं। इनकी संख्या 13 होती है। प्रत्येक वर्ग का पहला, दूसरा और श, ष, स आदि अघोष व्यंजन होते हैं।
जैसे:-
क ख
क छ
ट ठ
त थ
प फ
श ष स
- सघोष व्यंजन:-जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय यदि स्वरयंत्री में कंपन हो, तो वे सघोष व्यंजन कहलाते हैं। इनकी कुल संख्या 31 होती है। सभी स्वर, प्रत्येक वर्ग का तीसरा चौथा और पांचवां अक्षर , अंत:स्थ व्यंजन और ह आदि सघोष व्यंजन होते हैं।
जैसे:-
अ आ इ ई उ ऊ
ऋ ए ऐ ओ औ
ग घ ङ
ज झ ञ
ड ढ ण
द ध न
ब भ म
य र ल व
ह
- उत्क्षिप्त व्यंजन:-
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जिह्वा/जीभ उलट कर मूर्धा को स्पर्श करते हुए,
श्वास वायु को बाहर फेंक देती है, तो ऐसे व्यंजनों को उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं।
हिंदी भाषा में इनकी संख्या दो होती है।
जैसे:- ड़, ढ़ ।