नीतिनवनीतम् श्लोकार्थ :- इस आर्टिकल में आज SSCGK आपसे नीतिनवनीतम् श्लोकार्थ
नामक विषय के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। इससे पहले आर्टिकल में आप आत्मनेपदी धातु रुपाणि के बारे में आप पहले ही पढ़ चुके हैं।
नीतिनवनीतम् श्लोकार्थ :-
निम्नलिखित श्लोक मनुस्मृति से लिए गए हैं। ये सभी श्लोक सदाचार की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
1.अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
सरलार्थ-हर रोज अपने से बड़ों को प्रणाम करने वाले की एवं बड़े बूढ़ों की सेवा करने वालों की ये चार चीजें बढ़ती हैं- आयु, विद्या, यश और बल।
भावार्थ:-हमें नित्य अपने से बड़ों को प्रणाम करना चाहिए एवं अपने घर के वृद्धों की सेवा करनी चाहिए।
कठिन शब्दों के अर्थ:-
अभिवादन शीलस्य=प्रणाम करने के स्वभाव वाले
नित्यं=हमेंशा
वृद्धोपसेविन:=बुड्ढों की सेवा करने वाले की
चत्वारि=चार
वर्धन्ते=बढ़ती हैं
Nitinavnitam Shlokaarth:-
2.यं मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम्।
न तस्य निष्कृति: शक्या कर्तुं वर्षशतैरपि।।
सरलार्थ-व्यक्ति के जन्म के समय माता पिता जो कष्ट सहन करते हैं, उसका बदला सैकड़ों वर्षो में भी नहीं चुकाया जा सकता है।
भावार्थ:-माता पिता के उपकारों का बदला सैकड़ों वर्षो में भी नहीं चुकाया जा सकता।
कठिन शब्दों के अर्थ:-
मातापितरौ=माता और पिता
क्लेशं=कष्ट, दुख
सम्भवे=पैदा होने पर
नृणाम्=व्यक्ति के
निष्कृति:=बदला
नीतिनवनीतम् श्लोकार्थ:-
3.तयोर्नित्यं प्रियं कुर्यादाचार्यस्य च सर्वदा।
तेष्वेव त्रिषु तुष्टे तप: सर्वम् समाप्यते।।
सरलार्थ-हमें अपने माता-पिता और अपने गुरु का आदर एवं सेवा करनी चाहिए। इन तीनों के संतुष्ट होने अर्थात खुश होने पर अन्य सभी तब समाप्त हो जाते हैं।
भावार्थ:-हमें अपने माता पिता और गुरु की हमेंशा सेवा करनी चाहिए ताकि वे खुश रहें।
कठिन शब्दों के अर्थ:-
सर्वदा=हमेंशा
त्रिषु=तीनों के
तुष्टे=संतुष्ट होने पर, प्रसन्न होने पर
प्रियं=प्रिय, मन को अच्छा लगने वाला
समाप्यते=समाप्त हो जाता है
नीतिनवनीतम् श्लोकार्थ:-
4.सर्वं परवशं दु:खं सर्वमात्मवशं सुखम्।
एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदु:खयो:।।
सरलार्थ-व्यक्ति का दूसरे के अधीन रहने को तो कहा गया है और अपने अधीन रहने को सुख कहा गया है। संक्षेप में सुख और दुख का यही लक्षण समझना चाहिए।
भावार्थ:-दूसरे के अधीन रहना किसी दुख से कम नहीं होता एवं अपने अधीन रहना ही सबसे बड़ा सुख होता है।
कठिन शब्दों के अर्थ:-
परवशं =दूसरे के अधीन
आत्मवशं=अपने अधीन
विद्यात्=समझना चाहिए
समासेन= हाय
सुखदु:खयो:=सुख और दुख का
नीतिनवनीतम् श्लोकार्थ:-
5.यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मन:।
तत्प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत्।
सरलार्थ-जिस कार्य को करने से हमारी अंतरात्मा को परम आनंद मिलता है, हमें उस कार्य को पूरी तन्मयता के साथ करना चाहिए। इसके विपरीत जिस कार्य को करने में हमें आनंद नहीं मिलता है, उस कार्य को छोड़ देना चाहिए अर्थात नहीं करना चाहिए।
भावार्थ:-हम उस कार्य को पूरी तन्मयता के साथ करना चाहिए, जिस कार्य को करने से हमें संतोष/ आनंद मिलता है ।
कठिन शब्दों के अर्थ:-
कुर्वत: =करते हुए
परितोष:=संतोष/आनंद की अनुभूति होना
प्रयत्नेन=प्रयास से या कोशिश द्वारा
कुर्वीत=करें, करना चाहिए
वर्जयेत्=छोड़ दें, छोड़ देना चाहिए
नीतिनवनीतम् श्लोकार्थ :-
6.दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत्।
सत्यपूतां वदेद्वाचं मन: पूतं समाचरेत्।
सरलार्थ-देखभाल कर अपने कदम रखने चाहिए। वस्त्र से छना हुआ जल/पानी पीना चाहिए। सत्य से पवित्र वाणी बोलनी चाहिए अर्थात हमेंशा सत्य बोलना चाहिए तथा पवित्र मन से आचरण करना चाहिए।
भावार्थ:-हमें जीवन में अच्छी प्रकार से सोच समझकर निर्णय लेने चाहिए।
कठिन शब्दों के अर्थ:-
पूतं=पवित्र
न्यसेत्=रखें, रखना चाहिए
पादम्=पैर, कदम
सत्यपूतां =सत्य से पवित्र ।
समाचरेत्=आचरण करें, आचरण करना चाहिए