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CTET cdp Notes in Hindi PDF by himanshi singh

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Que.-1.इस काल में ही मन्दिरों की क्षेत्रीय शैलियाँ विकसित हुई। इस काल में विशाल एवं परिपूर्ण मन्दिरों का निर्माण हुआ।

Que.-2.लगभग आठवीं शताब्दी से राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआ, “गुर्जर-प्रतिहार अथवा महामारू” कहा गया है।

Que.-3.गुर्जर-प्रतिहार अथवा महामारू शैली के अन्तर्गत प्रारम्भिक निर्माण मण्डौर के प्रतिहारों, सांभर के चौहानों तथा चित्तौड़ के मौर्यों ने किया।

Que.-4.गुर्जर-प्रतिहार अथवा महामारू शैली के मन्दिरों में केकीन्द (मेड़ता) का नीलकण्ठेश्वर मन्दिर, किराडू का सोमेश्वर मन्दिर प्रमुख हैं।

Que.-5.इस क्रम को आगे बढ़ाने वालों में जालौर के गुर्जर प्रतिहार रहे और बाद में चौहानों, परमारों और गुहिलों ने मन्दिर शिल्प को समृद्ध बनाया।

Que.-6.इस युग के कुछ मन्दिर गुर्जर-प्रतिहार शैली की मूलधारा से अलग है, इनमें बाड़ौली का मन्दिर, नागदा में सास-बहू का मन्दिर और उदयपुर में जगत अम्बिका मन्दिर प्रमुख हैं।

Que.-7.इसी युग का सिरोही जिले में वर्माण का ब्रह्माण्ड स्वामी मन्दिर अपनी भग्नावस्था के बावजूद राजस्थान के सुन्दर मन्दिरों में से एक है। वर्माण का ब्रह्माण्ड स्वामी मन्दिर एक अलंकृत मंच पर अवस्थित है।

Que.-8.दक्षिण राजस्थान के इन मन्दिरों में क्रमबद्धता एवं एकसूत्रता का अभाव दिखाई देता है। इन मन्दिरों के शिल्प पर गुजरात का प्रभाव स्पष्टतः देखा जा सकता है। इन मन्दिरों में विभिन्न शैलीगत तत्वों एवं परस्पर विभिन्नताओं के दर्शन होते हैं।

Que.-9.ग्यारहवीं से तेरहवीं सदी के बीच निर्मित होने वाले राजस्थान के मन्दिरों को श्रेष्ठ समझा जाता है क्योंकि यह मन्दिर-शिल्प के उत्कर्ष का काल था।

Que.-10.ग्यारहवीं से तेरहवीं सदी के बीच के इस युग में राजस्थान में काफी संख्या में बड़े और अलंकृत मन्दिर बने, जिन्हें सोलंकी या मारु गुर्जर शैली के अन्तर्गत रख जा सकता है।

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